छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहे जाने वाला भोरमदेव मंदिर में लग चुका है एक अनोखा महोत्सव. इस महोत्सव की तैयारियां पुरी हो चुकी हैं. 11 वीं सदी का यह मंदिर नागवंशी सामंत राजा गोपालदेव द्वारा बनाया गया है. यह मंदिर पूरी तरह से चट्टानी पत्थरों से बना है. इस मंदिर को कोणार्क के सूर्य मंदिर और खजुराहो के कलाकृति का अद्भुत मेल भी कहा जाता है.
मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है. यह मंदिर नागर शैली का एक सुंदर उदाहरण है. मंदिर में तीन तरफ से प्रवेश किया जा सकता है. मंदिर पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर बना है. तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर मंडप में प्रवेश किया जा सकता है.
कब शुरू हुआ था भोरमदेव महोत्सव
भोरमदेव मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (तेरस)को विशाल मेले का आयोजन सैकड़ों साल से किया जा रहा है. बताते हैं यह मेला राजा राजपाल सिंह के समय से चला आ रहा है. वर्ष 1995 से यह मेला महोत्सव में बदल गया, जो निरंतर चल रहा है.
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