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नक्सलवाद का गढ़: छत्तीसगढ़ में 25 सालों का खूनी इतिहास और अब उम्मीद की किरण

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांस ले रहा है. गृह मंत्री अमित शाह ने भारत से नक्सलवाद के खात्मे के लिए 31 मार्च 2026 की तारीख तय की है.

Manya Sarabhai by Manya Sarabhai
Apr 10, 2025, 04:00 pm GMT+0530
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांस ले रहा है.

गृह मंत्री अमित शाह ने भारत से नक्सलवाद के खात्मे के लिए 31 मार्च 2026 की तारीख तय की है.

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छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांस ले रहा है. गृह मंत्री अमित शाह ने भारत से नक्सलवाद के खात्मे के लिए 31 मार्च 2026 की तारीख तय की है.

अमित शाह ने बताया कि सरकार की रणनीति के चलते नक्सलवाद से अति प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर मात्र 6 रह गई है. इनमें छत्तीसगढ़ के 4 जिले- बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा और झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला ही बाकी है.

केन्द्र सरकार ने मार्च 2026 तक इस समस्या से मुक्ति का लक्ष्य रखा है. नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित छत्तीसगढ़ में लगातार ऑपरेशन से हालात यह हैं कि अब नक्सलियों का कैडर मामूली रह गया है, जहां बड़े नेता दूसरे राज्यों में जाकर छिप गए हैं, वहीं मध्यम स्तर के नेता जंगलों में भटक रहे हैं. आइए जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का क्या इतिहास रहा है.

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का इतिहास

भारत की आजादी के तुरंत बाद ही नक्सल आंदोलन भी देश भर में अपने पैर पसारने शुरू कर चुका था. नक्सलवाद एक विचारधारा है, जो पश्चिम बंगाल में जमींदारों के खिलाफ किसानों के आंदोलन से जुड़ी हुई है. यह 1960 के दशक की बात है. बंगाल में दार्जिलिंग जिले में स्थित एक गांव नक्सलबाड़ी में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार ने कानू सान्याल के साथ मिलकर सत्ता और जमींदारों के खिलाफ किसान विद्रोह की शुरुआत की.

नक्सलबाड़ी के विद्रोह ने युवाओं और ग्रामीण जनसंख्या को गहराई से प्रभावित किया, जिसकी गूंज समय के साथ बिहार और झारखंड तक सुनाई दी. इसी प्रकार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी अत्याचारों के खिलाफ लोगों ने हथियार उठाए, जिससे गरीब और भूमिहीन किसानों की आवाज को एक मंच मिला. इस व्यापक आंदोलन को नक्सलवादी आंदोलन के नाम से जाना गया और इसमें शामिल व्यक्ति नक्सली कहलाए.

छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो, नक्सलवाद की समस्या लगभग 25 वर्षों से चली आ रही है. मध्य प्रदेश से अलग होने से पहले भी, इस राज्य के आसपास के भौगोलिक क्षेत्र नक्सलवाद से प्रभावित थे, जो दुर्भाग्यवश इसे विरासत में मिला. इस प्रकार, नक्सलबाड़ी से शुरू हुई असंतोष और सशस्त्र विद्रोह की लहर पड़ोसी राज्यों तक फैली, जिसने छत्तीसगढ़ को भी इस समस्या से घेर लिया.

1 नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ. इसी समय के आसपास, पड़ोसी राज्यों (मुख्य रूप से तत्कालीन अविभाजित आंध्र प्रदेश और ओडिशा) में सक्रिय नक्सली संगठनों ने छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां शुरू कर दीं. इसका मुख्य कारण इन क्षेत्रों की भौगोलिक बनावट (घने जंगल, पहाड़ी इलाका), आदिवासी आबादी की उपस्थिति और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन था.

जानें छत्तीसगढ़ में कब-कहां हुई नक्सल गतिविधियां?

  1. प्रारंभिक घुसपैठ बस्तर संभाग के उत्तरी भाग (कांकेर, बस्तर के कुछ हिस्से), राजनांदगांव जिले का दक्षिणी भाग (मोहला-मानपुर) और बिलासपुर संभाग के पूर्वी सीमावर्ती इलाके से की गई.
  2. 2007 में दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने एक बड़े हमले में कई पुलिसकर्मियों को मार डाला. इसी वर्ष सलवा जुडूम की गतिविधियाँ चरम पर थीं और हिंसा का माहौल था.
  3. 2008 में ओडिशा सीमा के पास मलकानगिरी जलाशय में नक्सलियों के हमले में कई ग्रेहाउंड कमांडो बलिदानी हो गए, जिसका असर छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों पर भी पड़ा.
  4. 2010 में दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने एक भीषण हमले में 76 सीआरपीएफ जवानों को मार डाला, जो देश में नक्सली हिंसा की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी.
  5. अप्रैल 2010 में यह नक्सली हिंसा के इतिहास में सबसे घातक हमलों में से एक था. दंतेवाड़ा जिले के चिंतालनार के पास नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें 76 जवान बलिदान हो गए. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और सरकार पर नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया. नक्सलियों ने जवानों के हथियार भी लूट लिए थे.
  6. मई 2010 में नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में एक यात्री बस को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया, जिसमें कई विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) और नागरिक सहित 31 से 44 लोग मारे गए. यह पहला मौका था जब नक्सलियों ने सीधे तौर पर एक नागरिक बस को निशाना बनाया था.
  7. मई 2013 में सुकमा जिले के झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी के नेताओं के काफिले पर हमला कर दिया, जिसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित 33 लोग मारे गए. इस हमले ने राजनीतिक परिदृश्य को भी हिलाकर रख दिया और नक्सलियों के दुस्साहस को उजागर किया.
  8. मार्च 2014 में सुकमा जिले के घोरम घाटी में नक्सलियों ने एक हमले में 11 सीआरपीएफ जवान और 4 पुलिसकर्मियों सहित 16 लोगों की हत्या कर दी.
  9. अप्रैल 2015 में सुकमा जिले के पिडमेल गांव के पास नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में 7 एसटीएफ जवान बलिदान हो गए और 10 अन्य घायल हो गए. इसी अवधि में कांकेर और दंतेवाड़ा जिलों में भी नक्सली हमले हुए, जिसमें सुरक्षा बलों को नुकसान हुआ.
  10. मार्च 2016 में सुकमा जिले में नक्सलियों द्वारा किए गए बारूदी सुरंग विस्फोट में 7 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए. यह घटना नक्सलियों द्वारा IED के इस्तेमाल की निरंतर चुनौती को दर्शाती है.
  11. मार्च 2017 में सुकमा जिले के भेज्जी इलाके में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें 25 जवान बलिदान हो गए. यह इस अवधि का सबसे बड़ा नक्सली हमला था और इसने सुरक्षा रणनीति पर सवाल खड़े किए.
  12. अप्रैल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने भाजपा विधायक भीमा मंडावी के काफिले पर हमला कर दिया, जिसमें विधायक और उनके सुरक्षाकर्मी सहित 5 लोग मारे गए. इस घटना ने राजनीतिक हलकों में चिंता पैदा कर दी.
  13. मार्च 2020 में सुकमा जिले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में कई नक्सली मारे गए. इस वर्ष भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के पूर्व महासचिव गणपति (मुप्पला लक्ष्मणा राव) के आत्मसमर्पण की खबरें आईं, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि देर से हुई. यह नक्सली आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका था.
  14. अप्रैल 2021 में बीजापुर जिले के तर्रेम इलाके में नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर घात लगाकर बड़ा हमला किया, जिसमें 22 जवान बलिदान हो गए और कई अन्य घायल हुए. यह इस अवधि का सबसे बड़ा नक्सली हमला था और इसने सुरक्षा बलों की रणनीति पर फिर से सवाल खड़े किए. इस हमले में नक्सलियों ने आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था.
  15. अप्रैल 2024 में कांकेर से लेकर मानपुर तक सक्रिय एक 25 लाख रुपये का इनामी खूंखार नक्सली नेता शंकर राव,एक मुठभेड़ में मारा गया, यह सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी सफलता थी और क्षेत्र में नक्सलियों की पकड़ कमजोर हुई.
  16. जनवरी 2025 में छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में सक्रिय एक करोड़ का इनामी नक्सली चलपति (जयराम) एक मुठभेड़ में मारा गया. यह सुरक्षा बलों के लिए एक और महत्वपूर्ण सफलता थी और तीन राज्यों में नक्सली नेटवर्क को कमजोर करने में सहायक सिद्ध हुआ.

शुरुआती दौर में यह मुख्य रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों तक सीमित था और तीव्रता कम थी, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे बस्तर क्षेत्र में फैल गया और हिंसा का स्तर काफी बढ़ गया. पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और सरकार के विकास प्रयासों के कारण नक्सली गतिविधियों में कमी आई है. गृह मंत्री की 2026 की समय-सीमा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, जिसे प्राप्त करने के लिए निरंतर और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है.

Tags: Amit ShahCG DantewadaDeadline 31 March 2026Deep rooted NaxalismHome Minister Amit ShahJhelam GhatiNaxalbariNaxalismTOP NEWSWest Bengal
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