25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के दरभा घाटी में झीरम नामक स्थान पर एक बड़ा और भयावह नक्सली हमला हुआ था. इस हमले में नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी के नेताओं के एक काफिले को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं सहित 32 लोगों की हत्या कर दी गई थी.
यह दूसरा सबसे बड़ा नक्सल हत्याकांड था, इससे पहले 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ में हुए नक्सलियों ने सुरक्षा बल के जवानों पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया था. दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में नक्सलियों ने एंबुश लगाकर सीआरपीएफ के 76 जवानों को अपना निशाना बनाया था.
छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा का यह सबसे बड़ा और दुखद उदाहरण आज भी उस घाटी में दफन अनगिनत राजों की गवाही देता है और उस भीषण हत्याकांड की साजिश की पूरी सच्चाई अब तक जांच एजेंसियों के लिए भी एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है.
कितने नक्सलियों की थी मौजूदगी?
झीरम घाटी में हुए इस बड़ें भयानक हमले को अंजाम देने के लिए सीआरसी-2 के करीब 300 हार्डकोर नक्सली आधुनिक हथियारों से लैस होकर पहुंचे थे. इनकी मदद के लिए दरभा, दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर से आए जन मिलिशिया कमेटी के करीब 500 नक्सलियों को लाया गया था. साथ ही मेडिकल टीम के सदस्य भी शामिल थे. ये सोचने वाली बात है कि झीरम घाटी में 800 नक्सलियों की मौजूदगी की खबर खुफिया तंत्र तक को नहीं मिली.क्या है सीआरसी?
नक्सलियों के सबसे खतरनाक लड़ाकू दस्ते को सीआरसी (सेंट्रल रीजनल कमांड) के नाम से जाना जाता है. इस दल में शामिल नक्सली सदस्यों की आयु 20 से 30 वर्ष के बीच की होती है. नक्सली संगठन में अभी तक सीआरसी-1,2 और 3 की स्थापना की गई है. सीआरसी-1 में शामिल नक्सली सदस्यों की जिम्मेदारी सेंट्रल कमेटी के शीर्ष नक्सली लीडरों की सुरक्षा व्यवस्था करना होता है. वहीं सीआरसी- 2 और 3 के नक्सलियो को थाना, कैंप और जवानों पर हमला करने की जिम्मेदारी दी जाती है.
हिकुम में इतने दिनों से चल रही थी प्रैक्टिस?
झीरम घाटी कांड को अंजाम देने कि लिए हिकुम गांव में ये 800 नक्सली एक महीने से अभ्यास कर रहे थे. इस घाटी के भौगोलिक परिदृश्य को हिकुम के जंगलों में तैयार किया गया था. जवानों को टारगेट करने के लिए 30 दिनों तक रोजाना सुबह-शाम प्रैक्टिस की जाती थी. झीरम घाटी हमले से पहले, नक्सलियों द्वारा इलाके की गहन रेकी की गई थी और सुरक्षाबलों की तैनाती की विस्तृत जानकारी जुटाई गई थी. इसमें सुरक्षा बलों की तैनाती के समय से लेकर उनकी संख्या, पहचान, हथियारों की मात्रा और भौगोलिक स्थिति का अध्ययन तक शामिल हैं.
कैसे शुरु हुआ ये खूनी खेल?
कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में उस समय होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए ‘परिवर्तन यात्रा’ नामक एक राजनीतिक रैली कर रही थी. 25 मई 2013 को जब यह काफिला दरभा की झीरम घाटी के घने जंगलों से गुजर रहा था, पहाड़ियों के आसपास छिपे लगभग 300 नक्सलियों ने काफिले पर दोनों तरफ से स्वचालित हथियारों से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. कांग्रेस नेताओं के निजी सुरक्षा अधिकारियों ने जवाबी कार्रवाई की और नक्सलियों से लगभग 90 मिनट तक मुठभेड़ चली.
नक्सलियों ने सड़क पर पेड़ों को काटकर गिरा दिया था, जिससे काफिला रुक गया. जैसे ही काफिले के वाहन धीमे हुए, नक्सलियों ने एक शक्तिशाली इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) विस्फोट किया, जिससे एक वाहन पूरी तरह से नष्ट हो गया और जमीन पर पाँच मीटर चौड़ा गड्ढा बन गया. यह आईईडी बैलाडीला खदान से लूटे गए थे. सुकमा और जगदलपुर से आने वाली बैकअप फोर्स रोकने के लिए झीरम घाटी के आगे पीछे सीआरसी टू के लड़ाकू तैनात किए गए थे.

इस घटना में तत्कालीन प्रदेश काग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, बस्तर टाइगर के नाम से प्रसिद्ध महेंद्र कर्मा, दिनेश पटेल, केंद्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल, फूलो देवी नेताम और गोपी माधवानी जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं की हत्या कर दी गई थी. पुलिस और आत्मसमर्पित नक्सलियों की माने तो झीरम हमले का मास्टरमाइंड कोई और नहीं बल्कि खुद माड़वी हिड़मा था. उसके ही नेतृत्व में इस पूरी साजिश को अंजाम दिया गया.
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