सालों पहले जब छत्तीसगढ़ सरकार को लगा कि नक्सलियों से लड़ रही सुरक्षाबलों की टीम काफी नहीं है, तो एक नई योजना बनाई गई. सरकार ने फैसला किया कि एक ऐसी फोर्स बनाई जाए जो नक्सलियों के बीच में से निकली हो. यानी, उसमें वे लोग शामिल हों जो नक्सलियों को करीब से जानते हों. क्योंकि ऐसे ही लोग उनका नेटवर्क तोड़ सकते हैं.
उन दिनों नक्सलियों का नेटर्वक गली-गली में था. कहीं कुछ भी होता, उसकी खबर तुरंत नक्सलियों को लग जाती थी. इसी वजह से नक्सली बड़े-बड़े हत्याकांड करके निकल जाते थे और पकड़े भी नहीं जाते थे. इस समस्या से निपटने के लिए एक स्पशेल फोर्स का गठन हुआ. आइए जानतें हैं-
DRG का गठन कब हुआ?
नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए छत्तीसगढ़ में स्पेशल फोर्स बनाई गई, जिसे ‘डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड’ नाम दिया गया. जिसका गठन 2008 में नारायणपुर क्षेत्र में हुआ था. इसे ‘जिला आरक्षित दल’ या ‘जिला रिजर्व समूह’ के नाम से भी जाना जाता है. साल 2008 में इसमें और जवानों की भर्ती भी की गई. आखिरी बार साल 2013 में सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में भी भर्ती की गई. वर्तमान में इस फोर्स में करीब 2 हजार जवान हैं.
DRG क्यों है खास?
- डीआरजी फोर्स की खासियत यह है कि नक्सली सबसे ज्यादा इनसे डरते हैं. इसके पीछे का कारण यह है कि ये युवा जवान नक्सल प्रभावित इलाकों से परिचित होते हैं.
- साथ ही गुरिल्ला लड़ाई में माहिर ये जवान नक्सलियों को उनकी ही भाषा में जबाव देते हैं.
- इनके कई अभियान नक्सलियों के खिलाफ बहुत सहायक रहे. क्योंकि उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, आदतें और काम करने के तरीकों की भी जानकारी होती है.
- इस स्पेशल फोर्स की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये बाकि सिक्योरिटी फोर्सेस जैसे- सीआरपीएफ (CRPF), एसटीएफ (STF), बीएसएफ (BSF), बस्तर बटालियन और बस्तर फाइटर्स में से सबसे मुख्य फोर्स है, क्योंकि ये फोर्स फ्रंट लाइन पर आकर लड़ती है.
स्पेशल फोर्स में किसकी होती है भर्ती?
- छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके ज्यादातर जनजाति क्षेत्र में ही आते हैं, इसलिए इस स्पेशल फोर्स में केवल स्थानिय लोगों की भर्तियां की जाती हैं. इसी कारण इन्हें “मिट्टी का पुत्र” (Son of the soil) भी कहा जाता है. क्योंकि इन्हें जंगल, स्थानीय भाषा और भौगोलिक परिस्थिति आदि की बहुत अच्छे से जानकारी होती है.
- इस फोर्स में सरेंडर कर चुके नक्सलियों को भी रखा जाता है, क्योंकि उन्हें अपने पुराने साथियों के पैंतरे पता होते हैं, जिसके आधार पर डीआरजी उनकी आगे की योजनाओं का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं.
- ये गार्ड्स 3 से 4 दिन तक जंगल में लगातार नक्सलियों की तलाशी कर सकते हैं. ये जवान बुलेटप्रुफ जैकेट के बिना ही नक्सलियों की सर्चिंग के लिए निकल पड़ते हैं.
- DRG को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों के विशेष ऑपरेशन जोन (SOZ) में तैनात किया जाता है, जहां वे नक्सल विरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
डीआरजी की ट्रेनिंग में क्या है खास?
DRG कर्मियों को आतंकवाद विरोधी और जंगल युद्ध में विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें आधुनिक हथियारों का उपयोग और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति भी शामिल है. वे राज्य पुलिस अकादमी और राज्य के बाहर सेना के शिविरों में भी ट्रेनिंग प्राप्त करते हैं.

DRG के कई अभियान हुए सफल
DRG कर्मियों ने कुछ समय पहले ही नक्सली हमलों में जान गंवाई है, जिसमें 2023 में दंतेवाड़ा में एक बड़ा बम विस्फोट शामिल है. हालांकि, उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ कई सफल अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें 2024 और 2025 में बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया है.
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