देश की महिलाएं, किसी की मां, किसी की बेटी या फिर किसी की पत्नी होने के साथ- साथ आज परिवार समेत देश की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रहीं हैं. मां दंतेश्वरी के नाम से जानी जाने वाली महिलाओं की ये फोर्स मां के शक्ति स्वरुप का एक परिचय है. ये फाइटर महिलाएं बच्चों को संभालने के साथ-साथ घने जंगलों में जाकर नक्सलियों का खात्मा भी कर रही हैं.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में नक्सलियों से निपटने के लिए ‘दंतेश्वरी फाइटर्स’ (Danteshwari Fighters) फोर्स का गठन किया गया है. ये फोर्स छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में महिला पुलिसकर्मियों और पूर्व नक्सली महिलाओं का एक विशेष दस्ता है.
क्या है ‘दंतेश्वरी फाइटर्स’ फोर्स ?
नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में तैनात छत्तीसगढ़ पुलिस के दंतेश्वरी फाइटर्स का गठन 2019 में किया गया. इस फोर्स के जरिए पहली बार महिलाएं नक्सल विरोधी अभियान में शामिल हुई. ‘दंतेश्वरी फाइटर्स’ में सबसे पहले 60 कमांडो को ट्रेनिंग दी गई थी. जिनमें सीआरपीएफ (CRPF) के बस्तरिया पटालियन की 30 सदस्य और जिला पुलिस बल की 30 सदस्य शामिल थीं. सबसे अहम बात यह है कि इसमें 7 ऐसी फाइटर्स भी शामिल हैं जो कभी खुद नक्सली हुआ करती थीं.
इसकी खासियत
दंतेश्वरी फाइटर्स की सबसे खास बात यह है कि इसमें केवल महिलाएँ ही शामिल हैं. यह भारत में इस तरह की पहली ऐसी फोर्स है जो विशेष रूप से महिला कमांडो से बनी है और नक्सल विरोधी अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लेती है. वे गश्त, निगरानी और टोही जैसे कार्य करती हैं. कई बार वे सादे कपड़ों में भी अभियानों में शामिल होती हैं ताकि उनकी पहचान उजागर न हो और वे अधिक प्रभावी ढंग से जानकारी जुटा सकें.
महिला फोर्स बनाने का उद्देश्य
महिला कमांडोज की टीम बनाने के पीछे का उद्देश्य ये है कि इन लड़कियों ने नक्सलियों के अत्याचार को अपनी आंखों से देखा है. कई ऐसी युवतियां हैं जो नक्सलियों की प्रताड़ना का शिकार हुई हैं. नक्सलियों के समूह का सदस्य रहीं महिलाएं उनके कई ठिकानों को जानती हैं. महिला टीम होने का एक फायदा यह भी रहा कि पहले पुरुष जवानों पर ग्रामीण महिलाओं से अभद्रता का आरोप लगाते थे, मगर अब महिला कमांडो के होने से यह आरोप खत्म हो गए.
महिला फोर्स की ट्रेनिंग
इन महिला कमांडो को न केवल हथियार चलाने और जंगल युद्ध की रणनीतियों का गहन प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि उन्हें बुनियादी चिकित्सा देखभाल की भी ट्रेनिंग दी जाती है. यह उन्हें दूरदराज के गांवों में जरूरतमंद लोगों को प्राथमिक चिकित्सा सहायता प्रदान करने में सक्षम बनाता है.

बहादुरी के लिए पहचान
इस यूनिट की कई सदस्यों ने मुठभेड़ों में अपनी असाधारण बहादुरी का प्रदर्शन किया है, जिसके लिए उन्हें समय से पहले पदोन्नति और अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. नक्सलियों को मार गिराने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है.
आइए जानतें हैं उनके बहादूरी के किस्से:
सुंदरी इस्काम कभी थी नक्सली अब बनी पुलिस कर्मी
अबूझमाड़ क्षेत्र के गांव बटवेड़ा की सुंदरी इस्काम कभी नक्सली थी, लेकिन 2019 में उन्होंने दंतेश्वरी फाइटर्स फोर्स जॉइन कर लिया. वर्ष 2005 में नक्सली उन्हें गांव से उठा ले गए थे. उन्होंने नक्सल संगठन के लिए कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया. फिर उन्हें विलास से प्यार हो गया और उन्होंने गांव लौटकर शादी कर ली. उन्हें डर था कि नक्सलियों को पता चलेगा तो उन्हें मार डालेंगे.
लेकिन अब फोर्स में शामिल होने कि बाद वे नक्सलियों से लड़ रही हैं. नक्सल मोर्चे के साथ घर और बच्चे की जिम्मेदारी भी संभालती हैं. कुछ वर्ष पहले ही तुर्रेवाड़ा मुठभेड़ में, उन्होंने एक सेक्शन कमांडर रैंक के नक्सली को मार गिराया था.
जज्बे की मिसाल: गर्भवती सुनैना ने मार गिराया नक्सली कमांडर
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा की फाइटर सुनेना पटेल जो आठ महीने की गर्भवती होने के बाद भी हर वो काम करती रहीं जो किसी भी मनुष्य के लिए बहुत मुश्किल होता है.

मुठभेड़ के दौरान महिला कमांडो सुनैना पटेल ने DRG के जवानों के साथ नक्सलियों का जमकर मुकाबला किया और नक्सली कमांडर हूंगा वट्टी को अपनी गोलियों से ढेर कर दिया. उनकी बहादूरी के लिए उन्हें आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन मिला.
नक्सलियों पर भारी पड़ी रेशमा
जिले के पालनार के जंगल में भी नक्सलियों से एक मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में दंतेश्वरी फाइटर्स की महिला कमांडो रेशमा कश्यप की अहम भूमिका रही. इस मुठभेड़ में रेशमा कश्यप ने डटकर नक्सलियों का सामना किया और एक नक्सली कमांडर को मुठभेड़ में मार गिराया. इस उपलब्धि के लिए महिला कमांडो रेशमा कश्यप की जमकर तारीफ हुई. इसके बाद रेशमा कश्यप को भी आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन मिला.
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