छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा शहर में भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक दंतेश्वरी मंदिर है. यह मंदिर बस्तर क्षेत्र की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी को समर्पित है. यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि बस्तर की आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
शक्ति पीठ से जुड़ी एक प्राचीन कहानी बताई जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ कराया था तो उन्होंने भगवान शंकर को इसमें आमंत्रित नहीं किया.
इसके पीछे कारण यह था कि दक्ष भगवान शिव को उनके सामाजिक स्तर के अनुरूप नहीं मानते थे. उनकी बेटी सती ने अपनी मर्जी से भगवान शिव से विवाह किया था, जिसके कारण वे यज्ञ
जब सती को अपने पिता के यज्ञ के बारे में पता चला, तो वो बिना निमंत्रण के ही वहाँ पहुंच गई. यज्ञ में पहुंचने पर दक्ष ने सती का अपमान किया और भगवान शिव को भी भला-बुरा कहा. अपने पति का ऐसा अपमान सुनकर सती अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गईं. जिसके बाद उन्होंने उस यज्ञ की अग्नि में ही अपने प्राण त्याग दिए.
जब भगवान शिव को सती के आत्मदाह की खबर मिली, तो वे क्रोधित हो उठे. उनका क्रोध इतना भयानक था कि उन्होंने अपनी जटा से एक गण वीरभद्र और देवी भद्रकाली को उत्पन्न किया, जिन्होंने दक्ष के यज्ञ को तहस-नहस कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया.
इसके बाद, भगवान शिव सती के निष्प्राण शरीर को अपने कंधों पर रखकर पूरी पृथ्वी पर भयानक तांडव करने लगे. उनका यह विनाशकारी नृत्य ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता था, जिससे सभी देवता भयभीत हो गए.
देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे शिव के क्रोध को शांत करें. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई अंगों में बांट दिया.
माना जाता है कि जिन-जिन स्थानों पर सती के शरीर के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुए. इसीलिए हर शक्तिपीठ का अपना एक विशेष महत्व है और वहाँ देवी सती के किसी न किसी अंग की पूजा की जाती है. वैसा ही एक शक्ति पीठ छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में है, जहां माता सती के दांत गिरे थे.
दूसरी कहानी ये भी है.
यह कहानी वारंगल के नरेश के छोटे भाई अन्नम देव से जुड़ी है, जिन्हें वारंगल राज से निर्वासित कर दिया गया था. जब वे गोदावरी नदी को पार कर रहे थे, उस दौरान उन्हें नदी में ही मां दंतेश्वरी की प्रतिमा मिली. जिसके बाद अन्नम देव ने माता की प्रतिमा को तट पर रखकर पूजा करनी शुरू कर दी. अन्नम देव की पूजा से प्रसन्न होकर मां साक्षत प्रकट हुईं और कहा कि मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ, मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चल रही हूं.
मां के आशीर्वाद से आगे चलकर उन्होंने बस्तर में नागवंशी राजाओं को पराजित किया. फिर अपने शासन के दौरान अन्नम देव ने माँ दंतेश्वरी को अपनी कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित किया. माना जाता है कि दंतेवाड़ा में स्थित भव्य दंतेश्वरी मंदिर उन्हीं के द्वारा बनवाया गया है.
मंदिर की स्थापना
इस प्राचीन मंदिर का निर्मांण अन्न्मदेव ने करीब 850 साल पहले कराया था. डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने करीब 700 साल पहले करवाया था. 1883 तक यहां नर बलि होती रही है. 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था.
दंतेश्वरी मंदिर की विशेषता
- दंतश्वरी मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला से प्रभावित है. इसमें मंडप, गर्भगृह और शिखर सहित कई भाग हैं. प्रवेश द्वार पर एक गरुड़ स्तंभ भी स्थापित है.
गरुड़ स्तंभ - मंदिर के प्रवेश द्वार पर भैरव बाबा की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिन्हें माँ का रक्षक माना जाता है और जिनके दर्शन के बिना माँ का दर्शन अधूरा माना जाता है.
- मां की प्रतिमा काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी छह भुजाओं वाली अनूठी और सुंदर है.
मां दंतेश्वरी मंदिर - यह मंदिर शंकनी और डंकनी नामक दो पवित्र नदियों के संगम पर स्थित है, जिनके पानी का रंग अलग-अलग है, जो एक अद्भुत दृश्य बनाता है.
क्या है मां दंतेश्वरी मंदिर की खासियत?
- पूरे भारत में चैत्र और शारदीय नवरात्रि उत्साह और उमंग से मनाई जाती है, लेकिन दंतेश्वरी मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां फाल्गुन महीने में भी आखेट नवरात्रि (जिसे फागुन मड़ई भी कहते हैं) भी मनाई जाती है, जो 10 दिनों तक चलती है.
- यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध 75 दिनों के बस्तर दशहरा उत्सव का केंद्र बिंदु है. इस दौरान देवी की डोली के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. जिसमें हजारों आदिवासी और अन्य श्रद्धालु भाग लेते हैं.
बस्तर दशहरा
दंतेश्वरी मंदिर में ज्योति कलश की विशेषता
दंतेश्वरी मंदिर में नवरात्रि के दौरान ज्योति कलश स्थापित करने की एक महत्वपूर्ण परंपरा है. यह परंपरा देवी माँ के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है. हिंदू धर्म में ज्योति (प्रकाश) और कलश दोनों ही अहम माने जाते हैं.
ज्योति देवी माँ की दिव्य शक्ति और तेज का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि कलश ब्रह्मांड और शुभता का प्रतीक है. नवरात्रि में ज्योति कलश स्थापित करना माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना और उनकी शक्ति का आह्वान करने का एक तरीका है.

भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नवरात्रि के दौरान घी या तेल के ज्योति कलश मंदिर में स्थापित करते हैं. यह माना जाता है कि इन नौ दिनों तक प्रज्वलित रहने वाली ज्योति माँ दंतेश्वरी तक उनकी प्रार्थनाओं को पहुंचाती है और उनकी इच्छाओं को पूरा करती है.
भक्तों की सुविधा के लिए, मंदिर में ज्योति कलश स्थापित करने की ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है, जिससे दूर-दराज के श्रद्धालु भी अपनी मनोकामना ज्योति प्रज्वलित करवा सकते हैं.
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