छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा एक गंभीर और लंबे समय से चला आ रहा विवाद है. राज्य की बदलती डेमोग्राफी को देखते हुए, वर्तमान विष्णु देव साय सरकार अवैध धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए एक सख्त कानून बनाने की तैयारी में है.
छत्तीसगढ़ में कहां से शुरू हुआ ईसाई धर्मांतरण?
छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्मांतरण की जड़ें 1906 में जशपुर जिले से जुड़ी हैं, जो एक जनजातीय बहुल और पिछड़ा क्षेत्र है. माना जाता है कि सबसे पहले ईसाई पादरी झारखंड के दुर्गम जंगलों और पहाड़ों को पार कर इसी क्षेत्र में पहुंचे थे.

खड़कोना गांव में स्थापित एक स्मारक उन शुरुआती 56 धर्मांतरित लोगों की स्मृति को समर्पित है, जिन्होंने 21 नवंबर 1906 को ईसाई धर्म अपनाया था.
क्या है वर्तमान स्थिति?
छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से जशपुर और बस्तर जिलों में ईसाई धर्मांतरण से जुड़े मामले सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं. मौजूदी समय में जशपुर जिले में धर्मांतरण की दर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है. अनुमान है कि जिले की लगभग 35% जनसंख्या का धर्म परिवर्तन हो चुका है. मार्च 2024 में एक आरटीआई आवेदन से चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि कानूनी रूप से ईसाई धर्म अपनाने वाले 210 लोगों में से कोई भी जीवित नहीं है.
वहीं, 2011 की जनगणना के अनुसार जशपुर में ईसाई जनसंख्या 22.5% (1.89 लाख) थी, जो अब बढ़कर लगभग 3 लाख हो गई है. जनजाति लोगों की पृष्ठभूमि से आने वाले मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस जनसांख्यिकीय परिवर्तन पर गहरी चिंता व्यक्त की है.
बस्तर के गांवों तक पहुंचा धर्मांतरण
बस्तर क्षेत्र में स्थिति और भी गंभीर है, जहां अनुमान है कि 70 प्रतिशत गांवों में धर्मांतरण का खेल चल रहा है और इसमें सीधे-सीधे विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल किया जा रहा है. बस्तर में 18 ऐसी संस्थाएं हैं जो विदेशी फंडिंग प्राप्त करती हैं.

इस क्षेत्र में लगातार यह आशंका जताई जा रही है कि यदि धर्मांतरण इसी गति से चलता रहा, तो बस्तर की सदियों पुरानी आदिवासी संस्कृति और विशिष्ट पहचान खतरे में पड़ जाएगी. यह न केवल एक धार्मिक परिवर्तन का मुद्दा है, बल्कि एक समुदाय की आत्मा और अस्तित्व पर मंडराता हुआ प्रश्न है.
बस्तर, जो अपनी अनूठी परंपराओं, कला और जीवनशैली के लिए जाना जाता है, धीरे-धीरे अपनी मौलिक पहचान खोता जा रहा है.
धर्मांतरण के मुख्य कारण
जनजातीय क्षेत्रों में बेहतर जीवन का लालच: जशपुर जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाकर धर्मांतरण कराने वाले संगठन लोगों को बेहतर जीवन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का लालच देते हैं.
संगठित गतिविधियां और वित्तीय प्रलोभन: कुछ संगठनों पर सुनियोजित तरीके से धर्मांतरण गतिविधियों को चलाने का आरोप है, जिसमें वित्तीय सहायता और अन्य प्रकार के प्रलोभन शामिल हैं.
विदेशी फंडिंग पर कड़ी निगरानी
धर्मांतरण गतिविधियों में विदेशी फंडिंग की भूमिका भी सरकार के रडार पर है. सरकार का मानना है कि विदेशी धन का उपयोग धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है. इस संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है:
राज्य में ऐसी 153 संस्थाएं हैं जो विदेशों से सहायता प्राप्त करती हैं और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत पंजीकृत हैं.

हालांकि विदेशी फंडिंग की जांच और कार्यवाही का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, लेकिन राज्य सरकार भी इस पर सक्रिय है.
अतीत में छत्तीसगढ़ में 364 संस्थाएं थीं, जिनमें जांच के बाद 84 संस्थाओं की फंडिंग रोक दी गई और 127 की वैधता समाप्त कर दी गई.
मिशनरियों से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों को करोड़ों का अनुदान दिए जाने की बात सामने आई है, लेकिन उनकी ऑडिट नहीं कराई जाती.
सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम
छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने यह भी घोषणा की है कि वह अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए एक नया सख्त कानून लाएगी, जो वर्तमान ‘छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1968’ को और मजबूत करेगा.
वर्तमान में राज्य में धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 1968 लागू है, जिसे 2006 में संशोधित किया गया था.
वहीं, विदेशी फंडिंग पर कड़ी निगरानी और प्रभावी कानूनी प्रावधान सरकार की प्राथमिकता है, ताकि राज्य की जनसांख्यिकी में हो रहे बदलावों को नियंत्रित किया जा सके.