केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार, नक्सलवाद की जड़ों को कमजोर करने और इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही हैं. इनमें नक्सल विरोधी अभियान और आत्मसमर्पण अभियान प्रमुख हैं. इन्हीं प्रयासों की कड़ी में ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और छत्तीसगढ़ पुलिस ने मिलकर 21 दिनों तक चलाया था.
यह ऑपरेशन मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्र अबूझमाड़ में केंद्रित था, जो नक्सल प्रभावित इलाका है. इस ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई, जिसमें 27 नक्सलियों को मार गिराया गया. मारे गए नक्सलियों में कुख्यात इनामी नक्सली नंबाला केशव राव भी शामिल था, जो इस ऑपरेशन की एक बड़ी सफलता मानी जा रही है.
2025 की शुरुआत से नक्सलियों का खात्मा
यह जानकारी बताती है कि 2025 की शुरुआत से ही बड़ी संख्या में नक्सलियों का खात्मा हुआ है, जो दर्शाता है कि नक्सल विरोधी अभियानों में तेजी आई है और सुरक्षा बल इस दिशा में प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2025 में मारे गए नक्सलियों की संख्या 180 से ज्यादा हो गई है.
हाल ही में समाप्त हुए 21-दिवसीय ऑपरेशन में 31 नक्सली मारे गए, अब नारायणपुर में 27 और नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया गया है.
पुलिस का यह दावा कि साल 2025 के पहले चार महीनों में 700 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे प्रयासों की सफलता को और मजबूत करता है. यह दर्शाता है कि सुरक्षा बलों के अभियानों के साथ-साथ, आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियों का भी सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.
क्या है ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ ?
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट सबसे लंबा नक्सल विरोधी अभियान था, जिसे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और छत्तीसगढ़ पुलीस ने मिलकर 21 दिनों तक चलाया था. यह ऑपरेशन कर्रेगुट्टालु पहाड़ी (KGH) के आसपास शुरू किया गया था. यह छत्तीसगढ़ -तेलंगाना सीमा पर स्थित एक नक्सली गढ़ है. इस ऑपरेशन के तहत छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 गिरफ्तारियां की गई हैं और 84 लोगों ने आत्मसमर्पण किया है.
गाल्गम फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस, जिसे 2022 में स्थापित किया गया था, ने इस मिशन के लिए केंद्रीय कमांड हब के रूप में काम किया. इसकी बदौलत दुर्गम इलाके में भी प्रभावी समन्वय और निरंतर परिचालन गति बनाए रखना संभव हो सका.
‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ का उद्देश्य
1. नक्सलियों का सफाया
2. सुरक्षाबलों को मजबूत करना
3. नक्सली ठिकानों को ध्वस्त करना
4.नक्सलवाद की जड़ों को कमजोर करना
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट का महत्व
तीन दशकों में पहली बार CPI-M के महासचिव स्तर के नेता को मार गिराया गया है, जो नक्सल विरोधी अभियानों में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है.
ऑपरेशन की सफलता केंद्रीय और राज्य बलों के बीच बढ़े हुए सहयोग को दर्शाती है, जिसे राज्य की सीमाओं के पार कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी और सैन्य समन्वय का समर्थन प्राप्त है.
नक्सलवाद से निपटने के लिये सरकारी उपाय
‘ऑपरेशन प्रहार’
केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने 2017 में इस समाधान अभियान की शुरुआत की थी. इसके साथ ही ऑपरेशन प्रहार के कई चरण शुरू हुए. यह पहली बार था कि सुरक्षा बलों ने नक्सल प्रभावित राज्यों, खासकर छत्तीसगढ़ में जंगलों के अंदर नक्सल विद्रोहियों के मुख्य इलाकों में प्रवेश किया.
‘ऑपरेशन प्रहार’ नाम का उपयोग मुख्य रूप से 2017 के आसपास से सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे आक्रामक अभियानों के लिए किया जा रहा है. इसका प्राथमिक उद्देश्य छत्तीसगढ़ से नक्सलियों को उनके ठिकानों से हटाना था. इस ऑपरेशन का मुख्य फोकस छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र रहा है, जो नक्सली गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र है.
‘ऑपरेशन प्रहार’ के अलावा सरकार ने नक्सलियों के खात्मे के लिए कई अन्य ऑपरेशन भी चलाए हैं. इनमें ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’, ‘ऑपरेशन समाधान-प्रहार’ और ‘ऑपरेशन थंडर’ जैसे उल्लेखनीय ऑपरेशन शामिल हैं.
‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’
ऑपरेशन ग्रीन हंट (2009): तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में नक्सलियों के खिलाफ एक यूनिफाइड कमांड बनाया गया और सभी राज्यों को एकजुट किया गया.
इस ऑपरेशन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक ‘यूनिफाइड कमांड’ का गठन था. इसका अर्थ था कि नक्सलवाद से निपटने के लिए केंद्र सरकार और सभी संबंधित राज्यों (विशेषकर रेड कॉरिडोर में शामिल राज्य जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि) की सुरक्षा एजेंसियों को एक साथ लाया गया.
इसका उद्देश्य विभिन्न सुरक्षा बलों (जैसे CRPF, BSF, राज्य पुलिस आदि) के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना और एक साझा रणनीति के तहत काम करना था.
यह अभियान भारतीय सुरक्षा इतिहास के सबसे बड़े और विवादास्पद अभियान में से एक था. इसने नक्सलियों को कुछ हद तक पीछे धकेला और उनके गढ़ों में सुरक्षा बलों की पैठ बढ़ाई. हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सरकार ने आधिकारिक तौर पर ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ नाम का इस्तेमाल नहीं किया, यह नाम मीडिया द्वारा व्यापक नक्सल-विरोधी अभियानों को दिया गया था.
कौन है नक्सली नेता – नंबाला केशव राव?
नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का शीर्ष नेता और महासचिव था, जिसे हाल ही में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया है. वह लगभग 40 सालों से नक्सली आंदोलन से जुड़ा था और कई बड़े हमलों को अंजाम दे चुका था. उसे नक्सली नेटवर्क की रीढ़ माना जाता था.
बसवराज का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में हुआ था.
- वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब NIT वारंगल) से बी.टेक की डिग्री हासिल की.
- छात्र जीवन में कुशल कबड्डी खिलाड़ी थे.
- छात्र जीवन में ही वामपंथी विचारधारा को अपनाया.
- रैडिकल स्टूडेंट्स यूनियन (आरएसयू) के साथ सक्रिय रूप से जुड़े.
- 1980 में श्रीकाकुलम में छात्र संगठनों के बीच हुए संघर्ष के दौरान गिरफ्तार हुए.
- गिरफ्तारी के बाद अपने गाँव से लापता हो गए और पूरी तरह से नक्सल आंदोलन में शामिल हो गए.
नक्सल आंदोलन में उदय और प्रशिक्षण
- 1980 के दशक में आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी और विशाखापत्तनम जैसे क्षेत्रों में माओवादी प्रभाव का विस्तार किया.
- 1992 में सीपीआई (एमएल) पीपुल्स वॉर के सेंट्रल कमेटी में शामिल किए गए.
- 2004 में सीपीआई (एमएल) पीपुल्स वॉर और माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एमसीसीआई) के विलय के बाद बनी सीपीआई (माओइस्ट) में सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का प्रमुख बनाया गया.
- इस भूमिका में उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की रणनीतियों को तैयार किया.
- कैडरों को आईईडी (IED) और घात लगाने की तकनीकों में प्रशिक्षित किया.
- खुफिया सूत्रों के अनुसार, 1980 के दशक के अंत में बस्तर के जंगलों में उन्हें पूर्व एलटीटीई लड़ाकों से विशेष प्रशिक्षण भी मिला था.
गिरफ्तारी से बचाव और नेतृत्व
- छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में हुए लगभग हर बड़े नक्सली हमले में इसकी भूमिका रही थी.
- 2018 में वरिष्ठ नक्सल नेता गणपति के इस्तीफे के बाद वह सीपीआई (माओइस्ट) के महासचिव बने.
- राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने उनकी गिरफ्तारी के लिए 10 लाख रुपये का इनाम रखा था.
- कई उपनामों का इस्तेमाल करते हुए, वह चार दशकों तक सुरक्षाबलों की पकड़ से बचते रहे.
कितने नक्सली हमलों में शामिल था बसवराजू?
- 2018 सुकमा IED हमला: नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों को ले जा रहे एक सुरंग संरक्षित वाहन को निशाना बनाकर IED विस्फोट किया, जिसमें नौ सीआरपीएफ जवान शहीद हुए, और 6 मारे गए.
- 2019 गढ़चिरौली बारूदी सुरंग विस्फोट: इसमें 15 पुलिसकर्मी और एक ड्राइवर की मौत हो गई थी.
- 2021 टेकलगुडेम हमला: बीजापुर में उस साल का सबसे बड़ा नक्सली हमला, जिसमें 22 जवान शहीद हो गए और 32 घायल हुए.
- 2023 दंतेवाड़ा IED विस्फोट: नक्सल विरोधी अभियान से लौट रहे वाहन को निशाना बनाकर आईईडी विस्फोट किया गया. 10 डीआरजी जवान और 1 नागरिक चालक मारे गए.
ये भी पढ़ें: बस्तर में ऐतिहासिक सफलता: सुरक्षाबलों ने मार गिराए 27 नक्सली, बसवराजू के अंत से नक्सलवाद को झटका