राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग – द्वितीय’ 2025 का समापन 5 जून को नागपुर में हुआ. समापन अवसर पर RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने महत्वपूर्ण विषयों पर विचार रखे, जिनमें मतांतरण (धर्म परिवर्तन) को लेकर उन्होंने अति महत्वपूर्ण बातें कहीं.
डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में साफ कहा कि यदि किसी व्यक्ति का धर्म जबरन, धोखे से या लालच देकर बदला जाता है, तो यह सीधा-सीधा अन्याय है. उन्होंने इसे एक प्रकार की मानसिक और सांस्कृतिक हिंसा बताया. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि धर्म का चयन व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा से होना चाहिए, न कि किसी दबाव या स्वार्थ से.
डॉ. भागवत ने खासकर जनजातीय समुदायों में हो रहे धर्मांतरण को लेकर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि भारत के आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली बहुत ही समृद्ध है, जिसे नष्ट नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने चेताया कि अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो भारत के आदिवासी भी अमेरिका के रेड इंडियनों की तरह खत्म हो सकते हैं, जो अपनी पहचान और संस्कृति लगभग खो चुके हैं.
आएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति या समुदाय पहले किसी मजबूरी या धोखे में आकर अपना धर्म बदल चुका है और अब वह अपने मूल धर्म में वापस आना चाहता है, तो यह गलत नहीं बल्कि सुधारात्मक कदम है. उन्होंने कहा कि ‘घर वापसी’ का विरोध नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह स्वेच्छा से अपनी जड़ों की ओर लौटना है.
संघ प्रमुख ने कहा कि मतांतरण समाज को तोड़ता है और सामाजिक एकता में बाधा डालता है. उन्होंने सभी धर्मों के लोगों से अपील की कि धर्म का प्रचार सेवा और प्रेरणा से करें, न कि जबरदस्ती या डर दिखाकर. उन्होंने स्पष्ट रूप कहा कि भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है और इस संस्कृति की रक्षा करना हम सबका दायित्व है. उन्होंने जोर दिया कि विविधता में एकता ही भारत की पहचान है और इसके लिए जरूरी है कि कोई भी व्यक्ति जबरन या धोखे से अपना धर्म न बदले.
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