राकेश दुबे
यह वैज्ञानिक रिपोर्ट निश्चित ही चौंकाने वाली है कि सन 2100 में लगभग 59 करोड़ लोग ऐसे जल स्रोतों पर निर्भर हो सकते हैं जो पीने योग्य पानी के लिए सबसे कड़े मानकों को पूरा नहीं करते हैं. तथ्य यह है कि दुनिया में लगभग हर चार में से एक व्यक्ति जीवित रहने के लिए पृथ्वी की सतह के नीचे मौजूद जलाशयों पर निर्भर है, क्योंकि साफ पानी की झीलों, नदियों और बांधों तक सभी लोगों की पहुंच नहीं है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि सदी के अंत तक लाखों लोग पानी की इस मामूली आपूर्ति से भी वंचित हो सकते हैं क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण उथले भूजल के विषाक्त होने का खतरा है.
एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने वैश्विक तापमान वृद्धि के विभिन्न परिदृश्यों के तहत दुनिया भर में भूजल स्रोतों के तापमान परिवर्तनों को सटीक संख्या में बताने के लिए ऊष्मा परिवहन का एक विश्व-स्तरीय मॉडल विकसित किया है. इस समय गर्मी की लहरें, बर्फ की पिघलती हुई टोपियां और समुद्रों का बढ़ता स्तर नियमित रूप से सुर्खियां बटोर रहे हैं,लेकिन हमारा ध्यान भूमि पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों की तरफ नहीं जाता.
हमें भूजल पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में अधिक व्यापक रूप से सोचने की आवश्यकता है. यह सच है कि हमारे पैरों के नीचे की चट्टान और मिट्टी की परतें समुद्री जल की गर्मी को अवशोषित करने की क्षमता से मेल नहीं खाती हैं. फिर भी,यह आश्चर्यजनक है कि भूजल के गर्म होने के परिणामों पर इतना कम ध्यान दिया गया है, खासकर जब पानी की कमी और रिचार्ज (पुनर्भरण) दर पर इतनी अधिक चर्चा होती है. सतह के ठीक नीचे छिद्रपूर्ण चट्टानों के भीतर फंसा पानी घुले हुए खनिजों, प्रदूषकों और संभावित रोगजनकों से भरा हो सकता है. बहुत बड़ी आबादी के समक्ष इस प्रदूषित जल पर निर्भर रहने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है. इन भूमिगत जलाशयों को सिर्फ़ एक या दो डिग्री गर्म करने से परिणाम भयावह हो सकते हैं. इससे पर्यावरण में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है और खतरनाक बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा मिल सकता है,या आर्सेनिक और मैंगनीज जैसी भारी धातुओं की अत्यधिक मात्रा पानी मे घुल सकती है.
दुनिया मे पहले से ही लगभग तीन करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं,जहां भूजल पीने के पानी के सख्त दिशा-निर्देशों में निर्धारित तापमान से ज्यादा गर्म है. इसका मतलब है कि बिना ट्रीटमेंट के वहां का पानी पीना सुरक्षित नहीं है. आसपास पर्याप्त आकार के सतही जलाशयों वाली आबादी के लिए भी गर्म भूजल उन प्रमुख कारकों को बदल सकता है जो पानी को मानव उपभोग के लिए सुरक्षित रखते हैं. 7.7 करोड़ से 18.8 करोड़ लोगों के ऐसे क्षेत्र में रहने का अनुमान है जहां भूजल 2100 तक पीने योग्य मानकों को पूरा नहीं कर पाएगा. इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि भूजल की रक्षा के लिए कार्रवाई करना और भूजल पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए स्थायी समाधान खोजना कितना आवश्यक है.
इस बीच, जलवायु परिवर्तन से संबंधित एक अन्य अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया में मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि पर चिंता व्यक्त की है. रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, लोगों की गिरती सेहत, गायब होती बर्फ की चादरों और अप्रत्याशित मौसम के रूप में जलवायु परिवर्तन की बड़ी चेतावनियां हमें लगातार मिल रही हैं. फिर भी हम वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा को उत्सर्जित कर रहे हैं. इससे हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है. विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में बताया गया है कि 2006 से वैश्विक मीथेन उत्सर्जन बढ़ रहा है. 2020 से इसमें तेजी आई है. यदि हम बहुत जल्द कुछ कठोर कदम नहीं उठाएंगे तो उत्सर्जन की यह प्रवृत्ति जारी रहेगी.
नए अध्ययन के शोधकर्ताओं ने मीथेन उत्सर्जन रोकने के लिए रणनीतियां तैयार की हैं जिनका उपयोग विभिन्न देश उचित कार्रवाई करने के लिए कर सकते हैं. इसमें मदद करने के लिए उन्होंने एक ऑनलाइन टूल भी विकसित किया है. शोधकर्ताओं ने लिखा है कि जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए दुनियाभर के प्रयास मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड पर केंद्रित हैं. चूंकि मानव जाति कई दशकों से जलवायु परिवर्तन को पर्याप्त रूप से निपटने में विफल रही है, इसलिए अब वार्मिंग को तय लक्ष्यों से नीचे रखने के लिए हमें सभी प्रमुख जलवायु प्रदूषकों पर अंकुश लगाने पड़ेंगे.
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं.)
हिन्दुस्थान समाचार