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Opinion: विनिर्माण क्षेत्र और बदलते भारत की तस्वीर

भारत में आज भी देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास कर रही है और वह अपने रोजगार के लिए सामान्यतः कृषि क्षेत्र पर निर्भर है तथा देश की कुल अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16-18 प्रतिशत के आसपास बना रहता है.

Manya Sarabhai by Manya Sarabhai
Aug 21, 2024, 01:12 pm GMT+0530
Opinion Manufracturing Industry

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प्रहलाद सबनानी

भारत में आज भी देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास कर रही है और वह अपने रोजगार के लिए सामान्यतः कृषि क्षेत्र पर निर्भर है तथा देश की कुल अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16-18 प्रतिशत के आसपास बना रहता है. अब यदि देश की 60 प्रतिशत आबादी देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 16-18 प्रतिशत तक का योगदान दे पा रही है तो स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र में गरीबी तो बनी ही रहेगी. परंतु, यह स्थिति अब धीरे धीरे बदल रही है क्योंकि हाल ही के वर्षों में भारत के विनिर्माण क्षेत्र का योगदान देश के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते ग्रामीण इलाकों के नागरिक शहरी क्षेत्रों में स्थापित की जा रही विनिर्माण इकाईयों में रोजगार के नए अवसर प्राप्त करने के उद्देश्य से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. विनिर्माण क्षेत्र में कई ऐसे नए क्षेत्र भी उभरकर सामने आए हैं जिन क्षेत्रों में भारत में उत्पादन बहुत कम मात्रा में होता रहा है. उदाहरण के लिए रक्षा क्षेत्र, दवा क्षेत्र, सेमी-कंडक्टर निर्माण क्षेत्र एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का क्षेत्र आदि का वर्णन यहां प्रमुख रूप से किया जा सकता है.

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में स्वदेशी रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन की मात्रा 1.27 लाख करोड़ रुपये की रही है जो पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय 16.7 प्रतिशत अधिक है. यह भारत सरकार द्वारा देश में उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों और सरकार के प्रयासों की प्रभावशीलता को रेखांकित करता है. वर्तमान में रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन करने वाली इकाईयों में सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों द्वारा संयुक्त रूप से प्रयास किए जा रहे हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान उक्त वर्णित उत्पादन में सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों का योगदान 79.2 प्रतिशत का रहा है जबकि निजी क्षेत्र की कम्पनियों का योगदान 20.8 प्रतिशत का रहा है. हर्ष का विषय तो यह भी है कि रक्षा के क्षेत्र में भारत में निर्मित किए जा रहे उत्पादों की अन्य देशों में भारी मांग निर्मित होती जा रही है और इन उत्पादों का निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में 21,083 करोड़ रुपये के मूल्य का निर्यात भारत से विभिन्न देशों में किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 32.5 प्रतिशत अधिक है और यह भारत में रक्षा के क्षेत्र में हुए कुल उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत है.

निर्यात में यह वृद्धि न केवल वैश्विक रक्षा बाजार में भारत के बढ़ते पदचिन्हों को दर्शाती है, बल्कि आत्मनिर्भरता और नवाचार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है. भारत में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हाल ही के समय में कई रणनीतिक पहल भी केंद्र सरकार द्वारा की गई है, जैसे, मजबूत नीतिगत ढांचे को विकसित करना, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना, अनुसंधान एवं विकास कार्यों में पर्याप्त निवेश को बढ़ावा देना, आदि शामिल हैं. स्वदेशीकरण की नीति के अनुपालन का असर भी रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन एवं निर्यात में हो रही भारी भरकम वृद्धि के रूप में दिखाई देने लगा है. रक्षा के क्षेत्र में उपयोग होने वाले सैकड़ों उत्पादों के आयात पर रोक लगाकर इन उत्पादों का उत्पादन भारत में ही करने के निर्णय का असर भी अब धरातल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है. रक्षा के क्षेत्र में विभिन्न उत्पादों का उत्पादन भारत में ही करने की नीति को लागू करने से देश में न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा बल्कि देश में आर्थिक प्रगति, तकनीकी उन्नति एवं रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिलेगा.

रक्षा क्षेत्र की तरह ही, हाल ही के समय में भारत ने उत्पादन के कई नए क्षेत्रों में प्रवेश किया है. कुछ वर्ष पूर्व तक दवा निर्माण के क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले एपीआई (ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडीयंट) नामक कच्चे माल का लगभग पूरे तौर पर चीन से आयात किया जाता था. परंतु, कोरोना महामारी के दौरान भारत को यह अहसास हुआ कि यदि चीन इस कच्चे माल का निर्यात भारत को करना कम कर दे अथवा बंद कर दे तो भारत में तो दवा उद्योग की इकाईयों में निर्माण कार्य ही ठप्प पड़ जाएगा. इसके बाद केंद्र सरकार ने एपीआई के उत्पादन को भारत में ही करने का फैसला लिया, आज स्थितियां पूर्णत: बदल गई है एवं एपीआई का निर्माण भारत में ही किया जाने लगा है. सम्भव है कि आगे आने वाले कुछ समय में एपीआई के निर्माण के क्षेत्र में भी भारत आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा. भारत आज एपीआई के उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है एवं भारत की वैश्विक एपीआई उद्योग में 8 प्रतिशत की हिस्सेदारी बन गई है. आज भारत में 500 से अधिक प्रकार के विभिन्न एपीआई का उत्पादन किया जा रहा है.

भारत में एपीआई का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय दवा उद्योग में तेज गति से वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है और आज यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1.72 प्रतिशत का योगदान देने लगा है एवं दवा उद्योग आज देश में रोजगार के करोड़ों अवसर निर्मित कर रहा है. भारतीय दवा उद्योग के वर्ष 2024 के अंत तक 6,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 13,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है. वर्ष 2013-14 के बाद से वर्ष 2021-22 तक भारतीय दवा निर्यात में 103 प्रतिशत की वृद्धि अंकित की गई है. जेनेरिक दवाओं के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत हो गई है, जिससे भारत को अब “विश्व का फार्मेसी हब” भी कहा जाने लगा है. केंद्र सरकार एपीआई के उत्पादन को भारत में बढ़ाने के उद्देश्य से एक समग्र एवं अनुकूल पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण करने पर जोर दे रही है.

वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने एपीआई के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के लिए 6,940 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की थी. 35 सक्रिय दवा सामग्री का विनिर्माण, जो एपीआई का लगभग 67 प्रतिशत है, जिसके लिए भारत की 90 प्रतिशत आयात पर निर्भरता है, भारत में PLI योजना के तहत प्रारम्भ किया जा चुका है. वर्ष 2022 के बाद से भारत के फार्मास्यूटिकल व्यवसाय में जबरदस्त बदलाव आया है एवं भारत अब वॉल्यूम उत्पादक से एक मूल्यवान आपूर्तिकर्ता देश बन गया है. दवाई के क्षेत्र में भारत अब वैश्विक स्तर पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार हो गया है.

लगभग चार वर्ष पूर्व वैश्विक स्तर पर ऑटोमोबाइल विनिर्माण के क्षेत्र में सेमीकंडक्टर की उपलब्धतता में आई भारी कमी के चलते वाहनों के उत्पादन को भारी मात्रा में घटाना पड़ा था. परंतु, इसके बाद केंद्र सरकार ने यह बीड़ा उठाया था कि सेमीकंडक्टर के निर्माण के क्षेत्र में भारत को वैश्विक हब बनाया जाएगा. भारत में सेमीकंडक्टर का बाजार 2,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है जो वर्ष 2025 तक बढ़कर 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने की सम्भावना है. इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं एवं सेमीकंडक्टर की विनिर्माण इकाईयां भारत में अधिक से अधिक संख्या में स्थापित हों इसके लिए भी केंद्र सरकार द्वारा गम्भीर प्रयास किए जा रहे हैं. भारत द्वारा सेमीकंडक्टर उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व हासिल किया जा सकता है. भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तो वैश्विक स्तर पर कई प्रौद्योगिकी फर्म से भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग लगाने के लिए सीधे ही चर्चा भी कर चुके हैं. काउंटरपोईंट रिसर्च और इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड सेमीकंडक्टर एसोसीएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का सेमीकंडक्टर बाजार वर्ष 2026 तक लगभग 6,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा जो वर्ष 2019 के बाजार से तीन गुना अधिक होगा.

इसी प्रकार, भारत में आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भी बहुत अधिक शोध चल रहा है ताकि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में भारत ही इस क्षेत्र में अपनी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध कर सके. इस क्षेत्र में कार्य करने वाली अमेरिका की कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां तो बैंगलोर में आकर इस क्षेत्र के इंजीनियरों की भर्ती हेतु प्रयास भी करती दिखाई दे रही हैं. कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आज विनिर्माण क्षेत्र के कई ऐसे क्षेत्रों में कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है जिनमे कभी भारत का प्रभुत्व ही नहीं रहा है. इससे भारत में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं एवं ग्रामीण क्षेत्रों पर नागरिकों का दबाव भी कम हो रहा है.

(लेखक, आर्थ‍िक मामलों के व‍िशेषज्ञ एवं स्‍तम्‍भकार हैं.)

हिन्दुस्थान समाचार 

Tags: Developed IndiaManufracturing IndustryOpinionToday's Opinion
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