Tuesday, June 17, 2025
No Result
View All Result
Live 24 Chattisgarh

Latest News

‘टू-नेशन थ्योरी के विचारवालों से देश को खतरा’ RSS प्रमुख डॉ मोहन भागवत

पहलगाम हमले पर RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत- ‘संकट में राष्ट्र की एकता और राजनीतिक परिपक्वता ही असली शक्ति’

प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गलत है: आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत

RSS ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ कार्यक्रम: जानिए मुख्य अतिथि अरविंद नेताम ने क्या कहा?

चर्चिल की कहानी से मोहन भागवत का संदेश: ‘जनता ही राष्ट्र की ताकत’

  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Business
    • Legal
    • History
    • Viral Videos
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
    • लाइफस्टाइल
Live 24 Chattisgarh
  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Business
    • Legal
    • History
    • Viral Videos
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
    • लाइफस्टाइल
No Result
View All Result
Live 24 Chattisgarh
No Result
View All Result

Latest News

‘टू-नेशन थ्योरी के विचारवालों से देश को खतरा’ RSS प्रमुख डॉ मोहन भागवत

पहलगाम हमले पर RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत- ‘संकट में राष्ट्र की एकता और राजनीतिक परिपक्वता ही असली शक्ति’

प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गलत है: आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत

RSS ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ कार्यक्रम: जानिए मुख्य अतिथि अरविंद नेताम ने क्या कहा?

चर्चिल की कहानी से मोहन भागवत का संदेश: ‘जनता ही राष्ट्र की ताकत’

  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
  • लाइफस्टाइल
Home अंतर्राष्ट्रीय

Opinion: बांग्लादेश-जमात का काला इतिहास और हिन्दुओं के लिए चेतावनी

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश की मुख्य इस्लामिक पार्टी और उसके समूहों पर से प्रतिबंध हटाकर यह साफ संकेत दे दिया है कि उसके देश में गैर मुसलमानों पर अत्‍याचार होते रहेंगे

Manya Sarabhai by Manya Sarabhai
Sep 2, 2024, 05:19 pm GMT+0530
Jammat

Jammat

FacebookTwitterWhatsAppTelegram

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश की मुख्य इस्लामिक पार्टी और उसके समूहों पर से प्रतिबंध हटाकर यह साफ संकेत दे दिया है कि उसके देश में गैर मुसलमानों पर अत्‍याचार होते रहेंगे. नवगठित यूनुस सरकार को जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश का बिना जांछ कराए ‘आतंकवादी गतिविधियों’ में कोई भी संलिप्तता का सबूत नहीं मिला है. जबकि यह पूरा विश्‍व जानता है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश वह मुख्य इस्लामी पार्टी है, जोकि मजहबी कट्टरपंथ और आतंक के लिए कुख्यात रही है.

दरअसल, बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अनेक आतंकी गतिविधि, भारत विरोधी इस्‍लामिक जिहादी षड्यंत्र, गैर मुसलमानों खासकर हिन्‍दुओं के प्रति घृणा का भाव रखने एवं उन पर अत्‍याचार करने की कई घटनाओं के सामने आने के अलावा पाकिस्‍तान समर्थित होने के कारण से जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर प्रतिबंध लगाया था. जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर हाई कोर्ट ने भी साल 2013 में चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था. अब बंगाली में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि इस संगठन से प्रतिबंध हटाया जा रहा है क्योंकि बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और उसके संबद्ध संगठनों की “आतंकवाद और हिंसा” के कृत्यों में संलिप्तता का कोई विशेष सबूत नहीं मिला है. इसके उलट बांग्लादेश में हाल ही में हुए तख्तापलट के बाद उपद्रवियों ने वहां हिंदुओं पर हमले किए, जोकि अभी भी कई जगह जारी हैं, उनमें सीधे और अप्रत्‍यक्ष रूप से इसी जमात-ए-इस्लामी पार्टी का हाथ है.

जमात का हिंसक इतिहास

जमात-ए-इस्लामी ने अपने स्थापना काल से ही हिन्‍दू विरोध और भारत विरोध का परिचय दिया है. यह भी साफ है कि इस साल 5 अगस्त के बाद से बांग्लादेश में हुई हिन्दू विरोधी हिंसा में मुख्य रूप से जमात ए इस्लामी ​ही जिम्मेदार है. इससे पहले 2001 में भी जमात ए इस्लामी ने हिंदुओं पर जबरदस्त कहर बरपाया था. उस वक्‍त भी बहुत बड़ी संख्‍या में हिन्‍दुओं का बांग्‍लादेश से पलायन करना पड़ा था। कई लोगों की जानें गई थीं. महिलाओं और बच्‍च‍ियों के साथ भी जघन्‍य अपराध भयंकर हिंसा और बलात्‍कार की अनेक घटनाएं घटी थीं. बांग्‍ला भाषा, संस्‍कृति और अपनी अस्‍मिता को लेकर जो संघर्ष पूर्वी पाकिस्‍तान में तत्‍कालीन समय 1971 के दौरान पश्‍चिमी पाकिस्‍तान से चला, उसमें ये संगठन जिहादी मानसिकता और इस्‍लामिक कट्टरवाद के कारण से वर्तमान पाकिस्‍तान के साथ खड़ा रहा था. इसने मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जोकि जगजाहिर हैं. बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के साथ-साथ स्वतंत्र बांग्लादेश में इसकी भूमिका; तथा विश्व स्तर पर और दक्षिण एशिया में इसके नेताओं क युद्ध अपराध भयंकर रहे हैं, जिनमें कि अब इसके सभी नेताओं को मोहम्‍मद यूनुस सरकार ने मुक्‍ति दे दी है!

जमात का असली मकसद

जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1941 में अविभाजित भारत में मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी ने एक इस्लामी संगठन के रूप में की थी. जिसका धर्म निरपेक्ष या पंथ निरपेक्ष सिद्धातों में कभी कोई विश्वास नहीं रहा. इसका एक ही उद्देश्य है इस्लामी मूल्यों के अनुसार समाज और देश का निर्माण. इसके लिए जमात-ए-इस्लामी को राजनीतिक ताकत की आवश्‍यकता महसूस हुई, लेकिन जब भारत का विभाजन हो गया तो उसका संपूर्ण भारत को इस्‍लामिक स्‍टेट बनाने का सपना अधूरा रह गया. इसलिए, समय के साथ, इसने अपने को एक जटिल सामाजिक और साथ ही राजनीतिक संगठन के रूप में विकसित किया.

भारत में बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज होने के कारण से यह यहां शरिया कानून लागू करने में असफल रहा है, किंतु बहुत हद तक पाकिस्‍तान में इसे इस्‍लामिक नियमों में बंधकर चलने और शरिया लागू कराने में सफलता मिली. यही सफलता जमात बांग्‍लादेश में भी चाहता है. अभी तक शेख हसीना जैसा राज्‍य बांग्‍लादेश में चला रही थीं, उसे ये संगठन इस्‍लाम के विरुद्ध ‘हराम’ (‘निषिद्ध’ ) मानता रहा है. अब जब इसे यूनुस सरकार ने क्लीन चिट दे दी है तब फिर से यह संगठन कोशिश करेगा कि कैसे यहां तालीबानी शासन लाकर शरिया की पूर्णत: स्‍थापना की जा सकती है.

जमात और पाकिस्तान की सांठगांठ

यहां सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक जमात-ए-इस्लामी ने एकीकृत मुस्लिम राज्य के अपने सपने को नहीं छोड़ा है. दोनों देशों (पाकिस्‍तान-बांग्‍लादेश) में इस संगठन की दो अलग-अलग शाखाएँ स्थापित हैं जोकि शेख हसीना के तख्‍ता पलट के दौरान एक जुट होकर आईएसआई के नेतृत्‍व में कार्य करती देखी गईं। जिसके साक्ष्‍य पिछले दिनों कई खुफिया एजेंसियों ने भी दिए.  पहले भी जब यह बांग्‍लादेश में 1970 के पूर्व सक्रिय था, तब भी यह संगठन पाकिस्‍तान के साथ खड़ा था. जब पाकिस्तान सरकार से मांग की गई थी कि पूर्वी पाकिस्तान बंगाली भाषी है, इसलिए उस पर उर्दू न थोपी जाए, तब इसने बांग्‍ला भाषा का समर्थन न करते हुए उर्दू का ही साथ दिया था। हालांकि बांग्‍ला भाषा को पूर्वी पाकिस्‍तान (आज का बांग्‍लादेश) में राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने को लेकर आन्‍दोलन चला.

उर्दू के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध, जो शुरू में एक भाषा आंदोलन के रूप में आरंभ हुआ था, आगे 1970 में चुनाव के बाद बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के रूप में सामने आया. शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान के राष्ट्रवादी आंदोलन ने पश्चिमी पाकिस्तान सरकार को स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए मजबूर किया था. आवामी लीग ने यह चुनाव जीता, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने उसे सत्ता से वंचित रखा. वैध रूप से चुनी गई सरकार के वैध अधिकारों के इस हनन ने मार्च 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को जन्म दिया. तब अपनी स्‍वाधीनता और अस्‍मिता के लिए पश्‍चिमी पाकिस्‍तान के साथ वर्तमान बांग्‍लादेश का युद्ध नौ महीने तक जारी रहा जब तक कि 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश को अपनी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हुई.

इस युद्ध के दौरान जमात-ए-इस्लामी की जो भूमिका सामने आई वह इस्‍लाम के नाम पर पाकिस्‍तान के साथ खड़े रहने की थी. उसके लिए बांग्‍ला भाषा, कला-संस्‍कृति से कहीं अधिक शरिया कानून, इस्‍लाम की सत्‍ता होने के मायने रहे जोकि पाकिस्‍तान की मानसिकता से मैच खाते हैं, इसलिए यहां जमात-ए-इस्लामी ने मुक्ति युद्ध के प्रति अपना सकारात्‍मक रुख नहीं रखा. अनेक मामलों और मोर्चों पर इस संगठन के लोगों ने पाकिस्‍तान का साथ निभाया. कहने का तात्‍पर्य है कि बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने बांग्लादेश (तत्‍कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अपने प्रयासों में पाकिस्तानी सेना को पूर्ण समर्थन प्रदान किया.

अपने ही देश और लोगों के खिलाफ जमात और उसका अत्याचार

बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान मुक्तिवाहिनी का गठन पाकिस्तान सेना के अत्याचार के विरोध में किया गया था. 1969 में पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जनरल अयूब के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया था और बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर्रहमान के आंदोलन के दौरान 1970 में यह अपने चरम पर था. मुक्ति वाहिनी एक छापामार संगठन था, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा था. मुक्ति वाहिनी को भारतीय सेना ने समर्थन दिया था. ये पूर्वी पाकिस्तान के लिए बहुत बुरा समय था. लेकिन जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश पर यह आरोप लगता रहा है कि इसने शेख मुजीबुर्रहमान के आंदोलन का साथ कभी नहीं दिया. बल्‍कि पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर अपने ही पूर्वी पाकिस्तानी भाइयों और बहनों के खिलाफ युद्ध अपराध करने में सक्रिय रूप से भाग लिया. उनकी गतिविधियों में सैकड़ों हज़ारों गैर-लड़ाकू पूर्वी पाकिस्तानियों की हत्या करना, जिनमें बच्चे भी शामिल थे, पूर्वी पाकिस्तानी महिलाओं (विशेष रूप से गैर-मुस्लिम हिन्‍दू महिलाओं) के साथ बलात्कार करना, विद्वानों, डॉक्टरों, वैज्ञानिकों आदि का अपहरण करना और उनकी हत्या करना शामिल रहा था.

पाक सेना ने जो बांग्लादेश में ईस्ट पाकिस्तानी वालेंटियर फोर्स बनाई, ताकि वर्तमान बांग्‍लादेश के तत्‍कालीन समय में स्‍वाधीनता संग्राम को दबाया जा सके तब तीन मुख्य मिलिशिया बनाए गए थे, जिन्हें रजाकार, अल-बद्र और अल-शम्स के नाम से जाना गया. इन सेनाओं ने बंगाल में नरसंहार का नंगा नाच किया. इसमें शामिल लोग अलग देश बांग्लादेश बनाने के विरोधी थे. इस ईस्ट पाकिस्तानी वालेंटियर फोर्स द्वारा किए गए सबसे जघन्य अपराधों में से एक था सैकड़ों हज़ार बंगाली महिलाओं को पकड़ना और उन्हें पाकिस्तानी सेना के मनोरंजन के लिए सैन्य शिविरों में बंधक बनाकर रखना. हालाँकि उनकी ख़ास दिलचस्पी गैर-मुस्लिम महिलाओं में थी, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। मुक्ति संग्राम के दौरान, लगभग 200,000 से 400,000 महिलाएँ बलात्कार और यौन दासता का शिकार हुईं. इस त्रासदी में मुस्लिम महिलाओं को भी नहीं छोड़ा गया, उनका अनुपात लगभग आधा था. बांग्लादेशी अधिकारियों के अनुसार, पश्चिमी पाकिस्तानियों और उनके समर्थकों, विशेष रूप से जमात-ए-इस्लामी और उसके सहयोगियों द्वारा लगभग तीन मिलियन बांग्लादेशी या पूर्वी पाकिस्तानियों को मार दिया गया था.

शेख मुजीबुर रहमान ने चरमपंथी मजहबी दलों को मिटाने की पहल करने में नहीं की देरी, पर…

नए बांग्‍लादेश निर्माण के आरंभ में जमात-ए-इस्लामी के लिए यहां कोई जगह नहीं थी. जमात-ए-इस्लामी के कई शीर्ष नेता जिन्होंने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया और युद्ध में बच गए, उनमें से कई पाकिस्तान भाग गए थे. कई बांग्लादेश में ही रहे, लेकिन शांत तरीके से, तब 12 जनवरी 1972 को स्वतंत्र बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री बनते ही शेख मुजीबुर रहमान ने चरमपंथी मजहबी दलों को मिटाने की पहल करने में देरी नहीं की. इस पहल के हिस्से के रूप में, बांग्लादेश का पहला संविधान चार सिद्धांतों; पंथनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, समाजवाद और लोकतंत्र के आधार पर तैयार किया गया। इस संविधान में, अनुच्छेद 38 के तहत, बांग्लादेश में मजहबी संबद्धता या उद्देश्यों के आधार पर राजनीतिक दलों को प्रतिबंधित कर दिया गया था.

इसके अतिरिक्त, अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण अधिनियम 1973 को राज्य में “नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अन्य अपराधों के लिए व्यक्‍तियों की हिरासत, अभियोजन और सज़ा प्रदान करने” के लिए अधिकृत करने हेतु पारित किया गया था. कहना होगा कि इसे पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगियों, जैसे जमात-ए-इस्लामी द्वारा बनाए गए लड़ाकू समूहों द्वारा किए गए अपराधों के खिलाफ़ मुकदमा चलाने के इरादे से पारित किया गया था. लेकिन इसके बाद हम देखते हैं कि भले ही स्वतंत्र बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी की यात्रा थोड़ी रुकती दिखी, लेकिन समय बीतने के साथ उसने अपने को नव-निर्मित बांग्लादेश में एक राजनीतिक इकाई के रूप में पुनर्जीवित करने में इस्‍लाम और कट्टरवाद ने सहारे आखिर कार कामयाबी हासिल कर ही ली.

इस संबंध में कह सकते हैं कि जमात-ए-इस्लामी को स्वतंत्र बांग्लादेश में एक राजनीतिक दल के रूप में अपनी यात्रा फिर से शुरू करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा. क्‍योंकि अगस्त 1975 में शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की सेना के कुछ कर्मियों द्वारा सैन्य तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी. उसी वर्ष, चार अन्य प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं की हत्या कर दी गई, जो शेख मुजीब की जगह लेने की क्षमता रखते थे। 1975 में हुए तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में कई तख्तापलट हुए. इन सैन्य तख्तापलटों के दौरान एक महत्वपूर्ण बदलाव तब हुआ जब मेजर जनरल जियाउर्रहमान 1977 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने. उन्होंने बांग्लादेश के संविधान में पाँचवें संशोधन के माध्यम से जमात-ए-इस्लामी के लिए राजनीतिक भागीदारी का मार्ग प्रशस्त किया. पाँचवें संशोधन ने पंथनिरपेक्षता और समाजवाद के प्रावधानों को समाप्त कर दिया और मजहब के आधार पर राजनीतिक दलों के गठन का प्रावधान प्रदान किया. जियाउर्रहमान ने स्वतंत्र बांग्लादेश में एक राजनीतिक दल के रूप में कार्य करने के लिए जमात-ए-इस्लामी को पुनर्जीवित किया.

जियाउर्रहमान के बाद खालिदा जिया ने भी जमात-ए-इस्लामी को पाला और उसे शक्‍तिशाली बनाया

मेजर जनरल जियाउर्रहमान की पत्नी खालिदा ज़िया ने उनकी मृत्यु के बाद इस विरासत को आगे बढ़ाया. सैन्य जनरल इरशाद ने जियाउर रहमान के मार्ग का अनुसरण किया और उनके शासनकाल के दौरान जमात-ए-इस्लामी का समर्थन करना जारी रखा. जमात-ए-इस्लामी ने अपनी खोई हुई शक्ति और गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए जियाउर रहमान और खालिदा जिया की राजनीतिक पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के साथ अपने गठबंधन का उपयोग किया. इसने बांग्लादेश के महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों जैसे कि अच्छी तरह से वित्त पोषित एनजीओ क्षेत्र और इस्लामी बैंक (बांग्लादेश के सबसे बड़े इस्लामी बैंकों में से एक) तक पहुंच और नियंत्रण प्राप्त किया.

इस दौरान, बांग्लादेश के निर्माण के खिलाफ़ खड़े लोग ही नेतृत्व के पदों पर पहुँच गए और बांग्लादेश के लोगों पर शासन करने लगे. बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व के दौरान, गैर-मुस्लिम और जातीय अल्पसंख्यक बेहद असुरक्षित हो गए और इसका असर सांप्रदायिक हिंसा की लगातार घटनाओं में देखने को मिलता रहा है.  हिन्‍दू-ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ बड़े अत्याचारों में पूजा स्थलों को नष्ट करना, हत्याएँ और बलात्कार शामिल है. ऐसा लग रहा था जैसे हिंसा, बलात्‍कार और अत्‍याचारों का इतिहास फिर से दोहराया जा रहा हो.

मिली जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को फांसी

इसके बाद जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ स्थिति तब फिर से मौलिक रूप से बदलने लगी जब शेख हसीना (शेख मुजीबुर रहमान की बेटी) के नेतृत्व वाली आवामी लीग पार्टी ने 2008 के चुनाव अभियान में अपना चुनावी एजेंडा बनाया कि वह युद्ध अपराधियों को दंडित करने के लिए मुकदमे चलाएगी. उनकी चुनावी जीत के बाद, किया गया वादा तब पूरा हुआ, जब शेख हसीना ने 2009 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण की स्थापना की और 1973 के मूल अधिनियम में संशोधन किया. मूल अधिनियम में सबसे महत्वपूर्ण संशोधन यह था कि इसे “व्यक्तियों ” के अलावा “संगठनों ” पर भी लागू किया गया. यह अधिनियम तब लागू हुआ जब जून से दिसंबर 2010 के बीच कई गिरफ्तारियां की गईं. इस अधिनियम ने आखिरकार तब निर्णय दिया जब पहली बार एक महत्वपूर्ण जमात-ए-इस्लामी नेता अब्दुल क़ादिर मुल्ला पर दिसंबर 2013 में मुकदमा चला और उसे फांसी दे दी गई.

तब बांग्‍लादेशी जनता ने उठाई थी जमात-ए-इस्लामी को राजनीति में प्रतिबंधित करने की मांग

शुरुआत में, अब्दुल क़ादिर मुल्ला को सिर्फ़ आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. इससे बांग्लादेश के युवा भड़क उठे, जो चार दशकों से न्याय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. ढाका के शाहबाग चौक पर हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने इकट्ठा होकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की और कुछ ही दिनों में इसका असर पूरे देश में फैल गया. प्रदर्शनकारियों ने अब्दुल क़ादिर मुल्ला और दूसरे युद्ध अपराधियों के लिए मृत्युदंड की मांग की. उन्होंने जमात-ए-इस्लामी को राजनीति से प्रतिबंधित करने की भी मांग की. उनका मानना ​​था कि इस तरह के मजहब आधारित राजनीतिक दल का अस्तित्व बांग्लादेश के निर्माण के मूल आधार, यानी सेक्‍यूलरिज्‍म के ख़िलाफ़ है. शाहबाग विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण प्रदर्शन थे, लेकिन उन्होंने जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों को नाराज कर दिया. उन्‍होंने हिंसक तरीकों से शाहबाग विरोध का जवाब दिया. जमात-ए-इस्लामी के गुस्साए समर्थकों ने पुलिस की कारों, सार्वजनिक वाहनों, मस्जिदों में नमाज़ की चटाई, धार्मिक अल्पसंख्यकों हिन्‍दू-ईसाई) के पूजा केंद्रों में आग लगा दी और बांग्लादेश का राष्ट्रीय ध्वज फाड़ दिया. उनकी हिंसक प्रतिक्रिया ने शाहबाग विरोध को और मजबूत कर दिया, और तमाम अराजकता के बीच शांतिपूर्ण देशव्यापी विरोध प्रदर्शन जारी रहा.

अब्दुल कादिर मुल्ला की फांसी के बाद, कई अन्य महत्वपूर्ण जमात-ए-इस्लामी नेताओं पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी दी गई. हालाँकि जमात-ए-इस्लामी शुरू में अपने नेताओं की फांसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने में सक्षम थी, लेकिन धीरे-धीरे सरकारी सुरक्षा बलों की उत्साही प्रतिक्रिया के सामने इसकी शक्ति कमज़ोर हो गई. शेख हसीना ने सत्‍ता में रहते हुए जमात-ए-इस्लामी के कई नेताओं को जेल में बंद कर दिया था और कई अन्य पुलिस से भाग रहे हैं, इसलिए पार्टी के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित करना मुश्किल हो गया था. पार्टी के लिए इस दबावपूर्ण स्थिति के बावजूद, बुद्धिजीवियों, अल्पसंख्यकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे लोगों के खिलाफ़ गुप्त रूप से हिंसा जारी रखी हुई थी, जिसमें कि पंथ निरपेक्ष शिक्षकों, बुद्धि‍जीवियों, हिंदू और अन्‍य आवामी लीग के कार्यकर्ताओं को समय-समय पर निशाना बनाया जाता रहा.

हालांकि जब शेख हसीना युद्ध अपराधियों पर कार्रवाई कर रही थीं, तभी उन पर इस युद्ध अपराधों में जमात-ए-इस्लामी नेताओं के खिलाफ़ चल रहे मुकदमों को लेकर दुनिया भर से दबाव आना शुरू हो गया था. एमनेस्टी इंटरनेशनल एवं अन्‍य कई संगठन मानवाधिकार एवं इस्‍लाम के नाम पर मृत्युदंड के विरोध में खड़े दिखे. इन मुकदमों के कारण पाकिस्तान और तुर्की जैसे कई मुस्लिम देशों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. अनातोलियन यूथ एसोसिएशन (एजीडी) के एक तुर्की समूह ने फांसी का विरोध किया था. यहां तक कि तुर्की के राष्ट्रपति ने फांसी के विरोध में ढाका से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था. शुरू में, सऊदी अरब दुनिया में इस्लामी संगठनों के महत्वपूर्ण दानदाताओं में से एक था, जिसने जमात-ए-इस्लामी नेताओं की फांसी के खिलाफ़ पैरवी करने की कोशिश की थी.

पाकिस्‍तान जुटा था कई शक्‍त‍िशाली देशों को लाभ दिखाकर हसीना सरकार को हटाने में

इस बीच शेख हसीना सरकार भी विश्‍व के देशों को यह भरोसा दिलाने का प्रयास करती रहीं कि उनकी कार्रवाई, न्यायिक प्रक्रियाएं त्रुटिपूर्ण नहीं हैं. उनके देश में दी गई कोई भी फांसी की सजा राजनीति से प्रेरित नहीं रही है, जो अपराधी है, उसे ही जेलों में रखा गया और फांसी दी जा रही है. वहीं, पाकिस्‍तान पूरी दुनिया में बांग्‍लादेश की शेख हसीना सरकार का विरोध करता रहा. पाकिस्‍तान यहां की चुनी हुई आवामी लीग की सरकार को अस्‍थ‍िर करने के लिए अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ ही कई आतंकवादी संगठनों की मदद लेकर, अन्‍य शक्‍तिशाली देशों की मदद से अपने प्रयास कर रहा था, जिसमें कि पहले की ही तरह जमात-ए-इस्लामी उसका पूरा साथ देती रही.

आखिरकार जब बांग्लादेश में आरक्षण के नाम पर तख्तापलट हुआ तो पहले की तरह ही उपद्रवियों ने वहां हिंदुओं पर हमले करना शुरू कर दिया है, जिसके पीछे जमात-ए-इस्लामी पार्टी का हाथ बताया जा रहा है. भले ही फिर उसके नेता इससे आज इंकार करते दिखें, पर यह सच सभी जान रहे हैं कि जो भी यहां हिन्‍दुओं पर अत्‍याचार हो रहे हैं, उसके पीछे जमात का ही हाथ है. यानी कि यह संगठन अपने शरिया कानून लागू करने, बांग्‍लादेश में हिन्‍दू अल्‍पसंख्‍यकों को खदेड़ने, उनका धर्म परिवर्तन कराने के अभियान में पहले से कई गुना तेजी के साथ आज जुटा हुआ दिखाई दे रहा है. ऐसे में अब जब मोहम्‍मद यूनुस सरकार ने जमात-ए-इस्लामी को प्रतिबंध हटा दिया है, तब संदेश साफ है, यहां गैर हिन्‍दुओं को अब अपनी पहचान कायम रखे रहना मुश्‍किल है. जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटाने का सीधा अर्थ यह भी है, बांग्‍लादेश का पूरी तरह से इस्‍लामीकरण हो जाना, उसका पाकिस्‍तान की राह पर चलना और गैर मुलसमानों पर भारी अत्‍याचार करना. निश्‍चित ही यह भारत के लिए खतरे की घंटी है और प्रत्‍येक गैर मुसलमान के लिए अपने को बचाए रखने की भी.

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबंध हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार 

Tags: BangladeshOpinionToday's Opinion
ShareTweetSendShare

RelatedNews

Mohan Bhagwat RSS
Latest News

‘टू-नेशन थ्योरी के विचारवालों से देश को खतरा’ RSS प्रमुख डॉ मोहन भागवत

संघ प्रमुख भागवत शुक्रवार से छत्तीसगढ़ के पांच दिवसीय दौरे पर
Latest News

पहलगाम हमले पर RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत- ‘संकट में राष्ट्र की एकता और राजनीतिक परिपक्वता ही असली शक्ति’

प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गलत है: आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत
Latest News

प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गलत है: आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत

RSS ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ कार्यक्रम: जानिए मुख्य अतिथि अरविंद नेताम ने क्या कहा?
Latest News

RSS ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ कार्यक्रम: जानिए मुख्य अतिथि अरविंद नेताम ने क्या कहा?

चर्चिल की कहानी से मोहन भागवत का संदेश: ‘जनता ही राष्ट्र की ताकत’
Latest News

चर्चिल की कहानी से मोहन भागवत का संदेश: ‘जनता ही राष्ट्र की ताकत’

Latest News

Mohan Bhagwat RSS

‘टू-नेशन थ्योरी के विचारवालों से देश को खतरा’ RSS प्रमुख डॉ मोहन भागवत

संघ प्रमुख भागवत शुक्रवार से छत्तीसगढ़ के पांच दिवसीय दौरे पर

पहलगाम हमले पर RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत- ‘संकट में राष्ट्र की एकता और राजनीतिक परिपक्वता ही असली शक्ति’

प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गलत है: आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत

प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराना गलत है: आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत

RSS ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ कार्यक्रम: जानिए मुख्य अतिथि अरविंद नेताम ने क्या कहा?

RSS ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ कार्यक्रम: जानिए मुख्य अतिथि अरविंद नेताम ने क्या कहा?

चर्चिल की कहानी से मोहन भागवत का संदेश: ‘जनता ही राष्ट्र की ताकत’

चर्चिल की कहानी से मोहन भागवत का संदेश: ‘जनता ही राष्ट्र की ताकत’

डॉ. मोहन भागवत का बेबाक संदेश: आतंकवाद, धर्मांतरण और राष्ट्र निर्माण पर सीधी बात

डॉ. मोहन भागवत का बेबाक संदेश: आतंकवाद, धर्मांतरण और राष्ट्र निर्माण पर सीधी बात

RSS के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग- द्वितीय’ का समापन समारोह, जानिए क्या बोले सरसंघचालक मोहन भागवत?

RSS के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग- द्वितीय’ का समापन समारोह, जानिए क्या बोले सरसंघचालक मोहन भागवत?

भारत की दूसरी सबसे बड़ी खनिज उत्पादक राज्य छत्तीसगढ़ का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान

भारत की दूसरी सबसे बड़ी खनिज उत्पादक राज्य छत्तीसगढ़ का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान

ठाकुर प्यारेलाल सिंह: ‘छत्तीसगढ़ के गांधी’ का प्रेरणादायक जीवन और योगदान

ठाकुर प्यारेलाल सिंह: ‘छत्तीसगढ़ के गांधी’ का प्रेरणादायक जीवन और योगदान

नक्सलवाद पर सुरक्षाबलों का शिकंजा: ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ में बसवराज ढेर, 2025 में 180 नक्सलियों का हुआ सफाया

नक्सलवाद पर सुरक्षाबलों का शिकंजा: ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ में बसवराज ढेर, 2025 में 180 नक्सलियों का हुआ सफाया

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer
  • Sitemap

Copyright © Live-24-Chattisgarh, 2024 - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • प्रदेश
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • वीडियो
  • राजनीति
  • व्यवसाय
  • मनोरंजन
  • खेल
  • Opinion
    • लाइफस्टाइल
  • About & Policies
    • About Us
    • Contact Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Disclaimer
    • Sitemap

Copyright © Live-24-Chattisgarh, 2024 - All Rights Reserved.