पेरिस में ओलंपिक खेलों में लचर प्रदर्शन के बाद पैरालंपिक में भारतीय एथलीटों के प्रदर्शन से सारा देश खुश है. हमारे एथलीटों ने अपने उल्लेखनीय और शानदार अविश्वसनीय प्रदर्शन से देश का मान बढ़ाया है. इन दिव्यांग खिलाड़ियों ने शारीरिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अपने उल्लेखनीय खेल से हरेक भारतीय प्रेरित किया है. भारत ने पैरालंपिक में 29 पदकों (सात स्वर्ण, नौ रजत और 13 कांस्य) जीते, जो कि अबतक का एक रिकॉर्ड है.
इसमें कोई शक नहीं है कि पदक तालिका में भारत का 18वां स्थान, सरकार द्वारा दिव्यांग खिलाड़ियों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन और सुविधाओं में बढ़ोत्तरी का ही प्रमाण है. इस पैरालंपिक में भारतीय कोचों और सहायक कोच भी पेरिस में खिलाड़ियों को हर तरह के सहयोग के लिए पर्याप्त संख्या में मौजूद थे. पहली बार भारतीय एथलीटों के लिए खेल गांव में एक स्पेशल रिकवरी सेंटर बनाया गया था. इससे खिलाड़ियों को चोटों से उबरने और अपनी फिटनेस को तेजी से सुधारने में मदद मिली, जिससे वे अपने प्रदर्शन में निरंतरता बनाए रख सके.
भारत ने पेरिस पैरालंपिक में 77 कोच और सहयोगी स्टाफ भेजे, जो टोक्यो पैरालंपिक में भेजे गए 45 कोच और सहयोगी स्टाफ से कहीं ज्यादा थे. इससे खिलाड़ियों को बेहतर मार्गदर्शन और देखभाल मिली, जिसका सीधा असर उनके प्रदर्शन पर पड़ा. पैरालंपिक में देश की भागीदारी ने केवल 16 वर्षों में एक उल्लेखनीय छलांग लगाई है. 2008 में बीजिंग पैरालंपिक में पाँच एथलीटों के मुकाबले अब भारतीय दल 84 हो गया है. बीते रविवार खेलों की समाप्ति से पहले भारतीय पैरालंपियनों ने एक भारतीय रेस्तरां में सुस्वादु भोजन का आनंद भी लिया. हमारे खिलाड़ी जश्न के मूड में थे.ये जश्न मनाने के हकदार भी थे.
यदि 2021 के टोक्यो पैरालंपिक में ही भारत ने संकेत दे दिए थे कि अब भारत पैरा स्पोर्ट्स के शिखर पर जाने को बेताब है. तो 2024 के पेरिस पैरालंपिक उस ख्वाब को हमारे दिव्यांग खिलाड़ियों ने काफी हद तक सच भी साबित कर दिया. एक दौर था जब भारत इन खेलों में दो-चार पदक ही ले पाता था. पर अब वह दिन चले गए। भारत अब दो अंकों में पदक हासिल कर रहा है और आसानी से अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ रहा है.
बेशक, पिछले टोक्यो खेलों में भारत के 19 पदक के प्रदर्शन ने देश में पैरालंपिक खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में एक लंबी छलांग लगाई थी. इस अर्थ में, पेरिस में यह देखना था कि क्या भारत इन खेलों में तेजी से आगे बढ़ रहा है अथवा नहीं. पैरालंपिक में हमारे श्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ ही देश और समाज को दिव्यांगों के प्रति अधिक उदार और मानवीय रवैया अपनाना होगा. अभी भी दिव्यांगों के हक में बहुत कुछ किया जाना शेष है. क्या हमारे देश में दिव्यांगों के मनमाफिक घरों या कमर्शियल इमारतों का निर्माण हो रहा है? कतई नहीं. अब लक्जरी होम, सी-फेसिंग फ्लैट, एलिट होम वगैरह के दौर में कितने बिल्डर और आर्किटेक्ट सोचते भी हैं दिव्यांगों के मनमाफिक घर बनाने के संबंध में। वास्तव में, बहुत ही कम. अफसोस है कि हमारे यहां दिव्यांगों के लिए हाई-राइस बिल्डिंगों और दूसरे घरों में पर्याप्त जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाने को लेकर सही ढंग नहीं सोचा जा रहा.
दिव्यांगों को लेकर रीयल एस्टेट कंपनियों और आर्किटेक्ट बिरादरी को ज्यादा संवेदनशील रुख अपनाना होगा। रीयल एस्टेट क्षेत्र से जुड़े सभी स्टेक होल्डर्स को विकलांगों और बुजुर्गों के लिए सुगम या कहें कि यूजर फ्रेंडली घर बनाने चाहिए. हालांकि भारत में रीयल एस्टेट सेक्टर ने बीते चंदे दशकों के दौरान लंबी छलांग लगाई है, पर उन रीयल एस्टेट कंपनियों को उंगुलियों पर गिना जा सकता है जो दिव्यांगों तथा बुजुर्गों की सुविधा का ध्यान रखकर निर्माण कर रही हैं. उदाहरण के लिए आपको इस तरह की आवासीय और कमर्शियल इमारतें कम ही मिलेंगी जिनमें विकलांगों की व्हीलचेयर को लिफ्ट के अंदर लेकर जाया जा सकता है. लिफ्ट में इतना कम स्पेस रहता है कि व्हीलचेयर अंदर लेकर जाना मुमकिन नहीं होता. बाथरूम और किचन में कैबिनेट इतनी ऊंचाई में होते हैं कि दिव्यांग शख्स के लिए उनका इस्तेमाल करना बेहद कठिन होता है. इस तरह के मसलों को देखने की जरूरत है. अमेरिका में उन्हीं रियलटर्स को दिव्यांगों को घर मुहैया करवाने की इजाजत दी जाती है, जो इसके लिए योग्य और प्रशिक्षित हैं लेकिन भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है.
देश में 16 किस्म की मान्य विकलांगता है. भारत में मानसिक और शारीरिक तौर पर विकलांग लोगों को रोजाना किसी न किसी तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. 2011 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब दो करोड़ 60 लाख विकलांग हैं. हालांकि गैर-सरकारी संगठनों के मुताबिक इनकी संख्या और बढ़ी है और यह छह और सात करोड़ के बीच हैं. संबंधित सरकारी महकमों को सुनिश्चित करना चाहिए ताकि बिल्डर और आर्किटेक्ट दिव्यागों के मनमाफिक ही इमारतें खड़ी करें. दिव्यांगों को देश के बाकी नागरिकों की तरह देखा जाना चाहिए. उन्हें अहसानों की जरूरत नहीं पर सामाजिक सम्मान के वे अवश्य हकदार हैं. पेरिस पैरालंपिक के विजेताओं को भी उसी तरह पुरस्कृत किया जाये, जैसे ओलंपिक खेलों के विजेता हुए हैं.
विकलांगों के आवास के लिए विशेष योजना बनाने की जरूरत है. व्हीलचेयर पर चलने वाली आबादी का मानना है कि कहीं भी प्रवेश की सुविधा होना अत्यंत महत्वपूर्ण है. एक दिव्यांग को अपने घर से बाहर, कॉलेज या दफ्तर जाने के लिए, बस पकड़ने, शॉपिंग कांप्लेक्स जाने या अन्य सार्वजनिक इमारतों में प्रवेश की वैसी ही सुविधा होनी चाहिए, जैसी सामान्य लोगों के लिए होती है. देश में स्थिति यह है कि अधिकतर स्थानों पर विकलांग व्यक्ति आसानी से जा नहीं सकते. अगर पश्चिम के देशों की बात करें तो वहां सार्वजनिक भवनों के गेट बहुत भारी-भरकम नहीं होते, जिससे व्हीलचेयर पर बैठा व्यक्ति भी बिना किसी अन्य सहायता के स्वयं सुगमता से आ-जा सकता है. सभी प्रसाधन स्थान भी इन सुविधाओं को ध्यान में रख बनाए गए हैं. लिफ्ट में खासतौर पर ऑपरेशनल स्विचों को नीचे की तरफ लगाया जाता है, जिससे विकलांग व्यक्ति को परेशानी का सामना न करना पड़े. पेरिस पैरालंपिक देश के लिए एक संदेश भी है कि हमें दिव्यांगों को उनका हक देना ही होगा.
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं.)
आर.के. सिन्हा
हिन्दुस्थान समाचार