भारतीय राजनीति के दिग्गज पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म आज यानि 25 सितंबर को हुआ था. वह कई वर्षों तक जनसंघ से जुड़े रहे. दीनदयाल उपाध्याय की एक उत्क्रष्ट पहचान पत्रकार , दर्शिनक और समर्पित संगठनकर्ता और नेता के तौर पर प्रचलित है. भाजपा की स्थापना से ही दीनदयाल उपाध्याय पार्टी के वैचारिक मार्गदर्शक और नैतिक प्ररेणा-स्रोत रहें हैं.
आइए जानतें हैं दीन दयाल उपाध्याय से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1. दीनदयाल का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के फरह कस्बे के निकट चंद्रभान गांव में हुआ था, जिसे अब दीनदयाल धाम के नाम से जाना जाता है. उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद था और वह एक ज्योतिषी थे. माता का नाम रामप्यारी था. जब वह आठ वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई और उनका पालन-पोषण उनके मामा ने किया.
2. दीनदयाल उपाध्याय का पालन- पोषण उनके ननिहाल में हुआ. वहां रहकर उन्होंने शुरुआती शिक्षा पूरी कर कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में B.A की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया. इसी दौरान उनकी मुलाकात श्री बलवंत महाशब्दे से हुई और उनके कहने पर ही उपाध्याय RSS में शामिल हुए.
3. 1940 के दशक में उन्होंने हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रसार के लिए लखनऊ से मासिक राष्ट्र धर्म की शुरुआत की. बाद में उन्होंने पांचजन्य और दैनिक स्वदेश भी शुरू किया.
4. 1942 में उन्होंने RSS में पूर्णकालिक काम शुरू किया और आजीवन प्रचारक बने रहे. वहां उन्होंने पार्टी के संस्थापक केबी हेडगेवार से मुलाकात की और संघ शिक्षा में 40 दिवसीय शिविर और आरएसएस शिक्षा विंग में दूसरे वर्ष का प्रशिक्षण लिया.
5.अपनी सभी संगठनात्मक क्षमताओं के अलावा वह अपने दार्शनिक और साहित्यिक कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं. उन्होंने ‘एकात्म मानववाद’ की अवधारणा विकसित की, जो प्रत्येक व्यक्ति के मन, शरीर, बुद्धि और आत्मा के समग्र विकास की वकालत करती है. संघ में उनकी मुलाकात भारत रत्न श्री नानाजी देशमुख और श्री भाऊराव देवरस से हुई. इन दोनों ने दीनदयाल के भविष्य निर्माण में अहम भूमिका निभाई.
6. उनका हमेशा मानना था कि भारतीय बुद्धि पर पश्चिमी सिद्धांतों का प्रभुत्व था. उन्होंने आधुनिक तकनीक का स्वागत किया लेकिन भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप. वह सदैव स्वराज अर्थात स्वशासन में विश्वास करते थे.
7. दिसंबर 1967 में उन्हें जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया. 11 फरवरी 1968 को यात्रा के दौरान रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी हत्या कर दी गई. उनका शव उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास मिला था.
8. उनकी कुछ साहित्यिक कृतियों में नाटक “चंद्रगुप्त मौर्य” और डॉ. के.बी. की जीवनी का अनुवाद शामिल हैं. हेडगेवार, जो मूलतः मराठी में लिखा गया था. उन्होंने 9वीं सदी के हिंदू सुधारक आदि शंकराचार्य (शंकराचार्य) की जीवनी भी लिखी.
उनकी विरासत आज भी भारत में भारतीय जनसंघ से निकली भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के रूप में जीवित है.