Maa Bamleshwari Mandir: बहुचर्चित तिरुपति बालाजी लड्डू मामले के बाद अब छत्तीसगढ़ से भी मंदिर के प्रसाद से जुड़ी खबर सामने आई है. डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी माता के मंदिर से प्रसाद से संबंधित ये खबर है. गुरुवार को राजनांदगांव खाद्य विभाग के पड़े छापे से ये पता चला की मां बम्लेश्वरी को चढ़ने वाला चिरौंजी प्रसाद “मजहर खान” नामक व्यक्ति के पोल्ट्री फार्म में बन रहा है. गौरतलब यह है कि मजहर खान के पोल्ट्री फार्म पर बड़ी संख्या में श्री प्रसाद के नाम से इलायची दाना बनाया जा रहा है.
छापेमारी में हुए बड़े खुलासे
इलायची दाने की पैकेजींग पर साफ तौर पर “स्वच्छ एंव पवित्र वातावरण” में र्निर्मित करे जाने का दवा किया गया है. डोंगरगढ़ के गांव राका में आज खाद्य विभाग ने छापा मारा है जिसमें चौंकाने वाली बात सामने आई है. आपको बता दें कि जहां प्रसाद बनाने की प्रक्रिया की जाती थी, उसी स्थान पर मुर्गी पालन भी हो रहा था. वहां से खाद्य विभाग टीम ने चिरौंजी दाने के सैंपल भी लिए हैं. फैक्टरी में काम करने वालों से पता चला कि पोल्ट्री फार्म उसी जगह है लेकिन वहां पर काम करने वाले अलग है.
तिरुपति बालाजी मंदिर प्रकरण के बाद अभी दो दिन पहले ही छत्तिसगढ़ प्रशासन ने जिले कि प्रमुख मंदिरों में शामिल डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी मंदिर के प्रसाद की जांच का ऐलान किया. उसी के साथ खाद्य एंव औषधि प्रशासन विभाग प्रमुख मंदिरों में बंटने वाले प्रसाद की जांच करने निकला था. नवरात्र से पूर्व बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट से चिरौंजी प्रसाद का सैंपल लिया जाना था लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी था कि मंदिर परिसर में बंटने वाला प्रसाद कहां और कैसे बनता है? इन सभी सवालों के जवाब ढूंढते हुए खाद्य विभाग की टीम मजहर खान के पोल्ट्री फार्म तक पहुंची. फैक्टरी में बहुत से चौंकाने वाले खुलासे हुए. पता चला कि संचालित फैक्टरी का पंजीयन नहीं है. साथ ही पैकेजिंग में भी खाफी गड़बड़ नजर आई. इलायची दाने के पैकेट पर मानक, तिथि, बैच नंबर अंकित नहीं है.
2000 वर्ष पुराना है मां का मंदिर
डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी मंदिर की ख्याति देश-विदेश तक है. इस शक्तिपीठ का इतिहास करीब 2200 साल पुराना है. डोंगरगढ़ पूर्व में वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी, जो कालांतर में डोंगरी व फिर डोंगरगढ़ कहलाई.पहाड़ी पर करीब 2 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजिती हैं मां बम्लेश्वरी, जिनके दर्शन के लिए लगभग 11 सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. नीचे छोटी बम्लेश्वरी हैं, जिन्हें बड़ी बम्लेश्वरी की छोटी बहन कहा जाता है. वैसे तो पूरे वर्ष यहां भीड़-भाड़ रहती है लेकिन नवरात्रि के दौरान तो कुछ अलग ही नजारा होता है. मां की एक झलक के लिए दूर-दूर से भक्तों की भीड़ इकट्ठी होकर धाम पहुंचती है. कई लोग रोप से तो कई पैदल ही मां का आर्शीवाद लेने पहुंचते हैं, ऐसा माना जाता है कि मां बम्लेश्वरी को उज्जैन के महाप्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी माना जाता है. इस मंदिर का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है.
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