ज़गदलपुर: बस्तर दशहरा का मुख्य आकर्षण दुमंजिला विशालकाय चार पहियाें वाले काष्ठ रथ की परिक्रमा के साथ शुरू हुई फूल रथ की परिक्रमा आज से राेजाना 10 अक्टूबर तक चलेगी. पहले 5 दिनों तक होने वाली चार पहियाें वाले काष्ठ रथ की परिक्रमा को फूल रथ परिक्रमा पूजा विधान कहा जाता है. जिसमें मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ कर इसे सिरहासार भवन से गोलबाजार, गुरुगोविद सिंह चौक होते हुए मां दंतेश्वरी मंदिर पहुंचाया गया, इससे पूर्व मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ करने के बाद परंपरानुसार एक चार के गार्ड के द्वारा बंदूक की सलामी दी गई, यह क्रम अनवरत 5 दिनों तक अर्थात 10 अक्टूबर तक जारी रहेगा. बस्तर दशहरा के दुमंजिला विशालकाय काष्ठ रथ को खींचने की जिम्मेदारी रियासत काल के दौर से जगदलपुर ब्लॉक के करीब 36 गांव के ग्रामीणों काे प्राप्त है, जिनके द्वारा शताब्दियों से वे इसका निर्वहन करते चले आ रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि बस्तर के ऐतिहासिक दशहरा पर्व को भव्य रूप प्रदान करने में बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव अपने जीवन के अंतिम क्षण तक संपन्न करवाते रहे. उनके जीवन काल में राजमहल का सिंहद्वार हमेशा बस्तर के ग्रामीणों के लिए खुला रहा. देवी की रथ यात्रा तथा विधानों के अनुसार पर्व संपन्न करवाना उनके दृढ़ संकल्प एवं आदर्श के रूप में आज भी याद किया जाता है. यही कारण है कि बस्तर दशहरा की चर्चा शुरू होने के साथ प्रति वर्ष बस्तर की ग्रामीण जनता स्व. प्रवीरचंद्र भंजदेव को श्रद्धा सुमन अर्पित करने बस्तर के राजमहल पहुंचती है. पूर्व में दंतेश्वरी मांई के छत्र के साथ बस्तर महाराजा बैठते थे. स्व. प्रवीरचंद्र भंजदेव की राजा होने की मान्यता 1961 में समाप्त करने के बाद भी 1965 तक रथ पर राजपुरुष आरूढ़ होते रहे. बस्तर केअंतिम महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की मृत्यु 1966 में होने के बाद रथ पर दंतेश्वरी मांई का छत्र ही आरूढ़ कर रथ परिक्रमा संपन्न हो रही है. इसके बाद किसी ने भी स्व. प्रवीरचंद्र भंजदेव के स्थान लेने का साहस नहीं किया, स्व. प्रवीरचंद्र भंजदेव की अमिट छाप आज भी बस्तर दशहरा के दौरान देखा जा सकता है, अब यह परंपरा का रूप ले चुका है.
हिन्दुस्थान समाचार