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Opinion: आपदाओं से निपटने में सरकारी तंत्र पहले से कितना बेहतर

प्राकृतिक आपदा कब आ जाए, कुछ नहीं पता. देश में पूरे साल कहीं न कहीं कुदरत का रौद्र रूप कहर बरपाता रहता है. बिहार का मिथिला क्षेत्र इस वक्त बाढ़ से प्रभावित है. असम में तेज बारिश ने कमोबेश कुछ वैसी ही स्थिति उत्पन्न की हुई है

Manya Sarabhai by Manya Sarabhai
Oct 7, 2024, 03:37 pm GMT+0530
Natural Calamity

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डॉ. रमेश ठाकुर

प्राकृतिक आपदा कब आ जाए, कुछ नहीं पता. देश में पूरे साल कहीं न कहीं कुदरत का रौद्र रूप कहर बरपाता रहता है. बिहार का मिथिला क्षेत्र इस वक्त बाढ़ से प्रभावित है. असम में तेज बारिश ने कमोबेश कुछ वैसी ही स्थिति उत्पन्न की हुई है. सवाल उठता है कि इस तरह की आपदा से निबटने के लिए हमारा सिस्टम पहले से कितना बेहतर हुआ या आत्मनिर्भरता के शोर में कुछ फीका पड़ गया है. प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए सरकारी तंत्र के अलावा आमजन को भी आगे आने की जरूरत है। सिर्फ एनडीआरएफ और अन्य राहत-बचाव दलों के भरोसे नहीं रहना चाहिए.

पिछले वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में विभिन्न किस्म की प्राकृतिक घटनाओं में सरकारी तंत्र ने डेढ़ लाख से अधिक लोगों को बचाया और 8 लाख लोगों तक राहत एवं बचाव कर उन्हें आपदाग्रस्त क्षेत्रों से बाहर निकालने का काम किया. अचानक आई आपदा से निपटने के लिए हमारा तंत्र पूरी तरह एनडीआरएफ पर निर्भर है। क्योंकि ये विभाग भरोसे का प्रतीक बन गया है. एनडीआरएफ भारत ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी सेवाएं देने से पीछे नहीं हटता. फिर चाहे वह वर्ष-2015 में नेपाल में आया विनाशकारी भूकंप हो या साल 2023 में तुर्किये का भूकंप. हर जगह एनडीआरएफ दल के कर्मी वहां भगवान का दूत बनकर खड़े दिखाई दिए.

आपदाएं किसी को बताकर नहीं आती लेकिन अब ऐसे बहुत से साइंटिफिक संसाधन मौजूद हैं, जिससे हम प्राकृतिक आपदाओं का समय रहते आकलन और बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं. साल-2005 के बाद से सरकारी स्तर पर हालात बदले और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा मोचन बल अथवा एनडीआरएफ का गठन किया गया. एनडीआरएफ के गठन के बाद से प्राकृतिक ही नहीं मानव जनित आपदाओं के प्रबंधन की दशा भी बेहतर हुईं. अब संकट के समय अलग अतिरिक्त बल है जिसके पास अलग-अलग तरह के संकटों से निपटने की क्षमता और दक्षता दोनों है.

बहरहाल, एनडीआरएफ और इनके जैसी संस्थाओं को और मजबूती प्रदान करने की जरूरत है. आपदाग्रस्त क्षेत्रों में तात्कालिक मदद और दीर्घकालिक सहायता दोनों चाहिए होती है. दीर्घकालिक सहायता प्रदान करने के लिए सरकार के पास समय होता है. पर, जो तात्कालिक मदद चाहिए, वह इतना त्वरित और प्रभावी होनी चाहिए कि आपदा का जनजीवन पर न्यूनतम असर हो. इसमें न केवल उनके जानमाल की रक्षा बल्कि कई बार उनके लिए तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था भी देनी होती है. इसीलिए एनडीआरएफ को त्वरित गति से सक्रिय करने के लिए केंद्र ने कई अहम निर्णय लिए हैं जो सराहनीय है. एनडीआरएफ को और सशक्त बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं.

आपदा प्रबंधन करने वाली कोई सरकारी संस्था ये मानकर नहीं चल सकती कि कुछ लोग तो मरेंगे ही. जब किसी संस्था के सामने ये लक्ष्य होता है कि हम आपदा में किसी एक की भी जान नहीं जाने देंगे, तो उनकी कार्यशैली अलग होगी. यह रक्षा दलों में जो आत्मविश्वास पैदा करता है उसके कारण उनकी सक्रियता ज्यादा तेज और जीवनोपयोगी हो जाती है. केरल के वायनाड में बादल फटने से हुई भारी बारिश के बाद जो तबाही आई, उसमें एनडीआरएफ का राहत एवं बचाव कार्य सभी ने देखा. वहीं, केंद्र सरकार ने भी बिना राजनीतिक भेदभाव किए लोगों को बचाया और प्रत्येक परिस्थितियों पर नजर रखी और हरसंभव मदद पहुंचाई. होना भी यही चाहिए। आपदाओं के वक्त ये नहीं देखना चाहिए कि प्रदेश में किस दल की सरकार है. वहां तकाजा सिर्फ मानवता का होना चाहिए.

गौरतलब है कि आपदाओं के वक्त कई बार ऐसा होता है कि घटना इतनी बड़ी हो जाती है कि अकेले एनडीआरएफ नहीं संभाल सकता. जैसे, गुजरात भूकंप, त्रिपुरा या केरल में आई बाढ़. उस समय पहले की तरह सैन्य बलों और स्थानीय राहत एवं बचाव कर्मियों के बीच समन्वय करते हुए एनडीआरएफ इस काम को अंजाम देता है. यही कारण है कि गृहमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि आपदाओं को लेकर अधिक से अधिक स्थानीय लोगों को भी जागरूक किया जाए, ताकि ऐसी स्थितियों में आमजन भी एनडीआरएफ कर्मी का सहयोग करें। लोगों का अगर रक्षा एवं बचाव दलों के साथ समन्वय होगा, तो परिणाम और अच्छे निकलेंगे.

केंद्र सरकार ने हाल ही में एनडीआरएफ की पोशाक में बदलाव किया है. इसके कर्मचारी अब भगवा रंग में दिखने लगे हैं. आपदाओं के वक्त इनके आने से लोग समझ जाते हैं कि हालात नियंत्रण में आ जाएंगे. यही भरोसा किसी भी आपदा रक्षा बल की ताकत होता है. फिर भी 140 करोड़ के देश में प्रकृति से अधिक मानव निर्मित आपदाएं आती ही रहती हैं, जिसमें 16,000 जवानों वाले एनडीआरएफ ने जिस प्रकार से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है उसके कारण आज भारत आपदाओं से बचाव में आत्मनिर्भर दिखने लगा है. पिछले साल नवंबर में उत्तराखंड के टनल हादसे में जिस प्रकार एनडीआरएफ की अगुवाई में राहत एवं बचाव कार्य किया गया, वह आपदाकालीन परिस्थितियों में राहत व बचाव कार्यों के क्षेत्र में दुनिया के लिए मिसाल बन गया.

भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण हर जगह हिमस्खलन, भूस्खलन, बाढ़ और तूफान जैसे खतरे बढ़ने वाले हैं. जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने पृथ्वी मंत्रालय का गठन कर वैज्ञानिक सूचनाओं का सहारा लेकर जीरो कैजुअल्टी के लक्ष्य की ओर मजबूती से कदम बढ़ाया है. केंद्र सरकार ने एनडीआरएफ को और मजबूत बनाने के लिए अधिक धन भी आवंटित किया है. देश ही नहीं विदेशों में भी जब कोई बड़ी आपदा आती है तो एनडीआरएफ को याद किया जाता है. निश्चित रूप से 20 साल से कम समय में एनडीआरएफ ने आपदा में बचाव का जो रिकॉर्ड बनाया है, उसमें वर्तमान केंद्र सरकार की स्पष्ट नीति और बल को सशक्त बनाने के लिए किया जाने वाला उपाय शामिल है.

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Natural CalamityOpinionToday's Opinion
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