धमतरी: खेतों में फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद जहरीली गैसों से न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, बल्कि वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा है. प्रशासन द्वारा लगातार प्रचार-प्रसार किए जाने के बाद भी फसल अवशेष जलाया जा रहा है. पराली जलाने वाले ऐसे किसानों पर अब सीधे 15 हजार रुपये तक अर्थदंड लिया जाएगा.
कृष उप संचालक मोनेश साहू ने किसानों से खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाने की अपील की है. उन्होंने बताया कि फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाऊस प्रभाव पैदा करने वाली हानिकारक गैस जैसे कि मीथेन, कार्बन मोनोअक्साईड, नाइट्रस आक्साईड तथा नाइट्रोजन के अन्य आक्साईड का उत्सर्जन होता है. बायोमास जलाने से उत्सर्जित होने वाले धुएं में फेफड़ों की बीमारी को बढ़ाने वाले तथा कैंसर उद्दीपक विभिन्न ज्ञात तथा संभावित प्रदूषक भी होते हैं. फसल अवशेष जलाने से मृदा की सर्वाधिक सक्रिय 15 सेमी तक की पर में से सभी प्रकार के लाभदायक सूक्ष्मजीवियों का नाश हो जाता है, फलस्वरूप फसल, विशेषकर जड़ की वृद्धि प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती है. फसल अवशेष जलाने से केंचुएँ, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाने से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता, फलस्वरूप मजबूरन महंगे तथा जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है.
अनुमानतः एक टन धान के पैरे को जलाने से 5.5 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 2.3 कि.ग्रा फास्फोरस 25 कि.ग्रा. पौटेशियम तथा 1.2 कि.ग्रा. सल्फर नष्ट हो जाता है. सामान्य तौर पर भी फसल अवशेषों में कुल फसल का 80 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 50 प्रतिशत सल्फर व 20 प्रतिशत पोटाश होता है। इनका उचित प्रबंधन कास्त लागत में पर्याप्त कमी कर सकता है.
उप संचालक कृषि ने बताया कि फसल अवशेष जलाने संबंधित कृत शासन के संज्ञान में आता है, तो उस स्थिति में अर्थदंड का भी प्रावधान किया गया है. अर्थदंड के अन्तर्गत 0.80 हेक्टेयर तक के भू-स्वामी को 2500 रुपये तक तथा 0.80 से 2.02 हेक्टेयर या उससे अधिक के भू-स्वामी को क्रमशः 5 हजार रुपये एवं 15 हजार रुपये अर्थदंड का प्रावधान किया गया है.
पराली के निपटान के लिए यह उपाय करें
फसल कटाई उपरांत खेत में पड़े हुए फसल अवशेष के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई, पानी का छिड़काव करने के पश्चात् ट्राईकोडर्मा का भुरकाव करने से फसल अवशेष 15 से 20 दिन पश्चात् कंपोस्ट में परिवर्तित हो जाएंगे, जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म तत्व प्राप्त होंगे.फसल अवशेष को कम्पोस्ट में परिवर्तित होने की गति बढ़ाने के लिए सिंचाई उपरांत यूरिया का छिड़काव भी किया जा सकता है. फसल अवशेष के कंपोस्ट में परिवर्तित होने से जीवांश की मात्रा मृदा में बढ़ जाती है, जिससे मृदा की जलधारण क्षमता तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवों-सूक्ष्म तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जो रासायनिक उर्वरकों के उपयोग क्षमता को बढ़ा देती है। ऐसा करने से कम रासायनिक उर्वरक डालकर अधिक पैदावार ली जा सकती है.
हिन्दुस्थान समाचार