सुप्रीम कोर्ट ने संविधान (Constitution) की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ (Socialism) और ‘धर्मनिरपेक्ष’ (Secular) शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में संशोधन का अधिकार संसद को है. प्रस्तावना में इसके अंगीकार करने की तिथि संसद को उसमें संशोधन करने से नहीं रोक सकती है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि इतने वर्षों के बाद इस प्रक्रिया को निरस्त नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने 22 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने 21 अक्टूबर को कहा था कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रहे हैं. कोर्ट पहले भी अपने कई फैसलों में इसे साफ कर चुका है. इन शब्दों की अलग-अलग व्याख्या हो सकती है. बेहतर होगा कि हम इन शब्दों को पश्चिम देशों के संदर्भ में ना देखकर भारतीय संदर्भ में देखें. यह याचिका भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय और बलराम सिंह की ओर से दायर की गई है.
याचिका में 42वें संविधान संशोधन के जरिये धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को जोड़ने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि 42वें संविधान संशोधन के जरिये इन शब्दों को जोड़ना गैरकानूनी है. संविधान बनाने वालों ने कभी भी संविधान में समाजवादी या धर्मनिरपेक्ष विचार को लाना नहीं चाहा. यहां तक कि डॉ बीआर अंबेडकर ने भी इन शब्दों को जोड़ने से इनकार कर दिया.
हिंदुस्थान समाचार