Kisan Diwas 2024: भारत एक कृषि प्रधान देश है. किसानों के समाजिक स्थापना के लिए हर साल 23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती को राष्ट्रीय किसान दिवस के रुप में मनाया जाता है. हर साल इस दिन का उद्देशय किसानों का आर्थिक विकास में योगदान और उनके कल्याण के लिए जागरुकता फैलाना है. इस बार के किसान दिवस का विषय स्थायी कृषि के लिए किसानों को सशक्त बनाना है.
कौन हैं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह?
अन्नदाताओं के मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म 1902 में मेरठ के नूरपुर गांव में हुआ था. चौधरी चरण सिंह खुद एक छोटे-से गांव में एक किसान के घर जन्मे थे. बचपन से ही उन्होंने गांव के किसानों, गरीबों के दुखः दर्द को नजदीकी से देखा जाना था. इसलिये उन्हें उनकी समस्याओं का बखूबी अहसास था.
1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके पूर्वजों ने भाग लिया है, जिससे उनके परिवार के संघर्ष का इतिहास भी पुराना था. इस से प्रेरित होकर चौधरी चरण सिंह ने भारत को आजाद कराने में एक अहम भूमिका निभाई और इसके बाद वह लगातार किसानों के विषयों में सक्रिय रहे.
अपने जीवन काल में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था. पहली बार 1929 में और फिर 1940 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने अपना राजनीति का सफर कांग्रेस पार्टी के साथ फिर कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल की स्थापना की और समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई.
चौधरी चरण सिंह का राजनीति सफर और किसानों के जीवन में कुशलता का प्रयास
चौधरी चरण सिंह को 1951 में उत्तर प्रदेश सरकार में न्याय एवं सूचना विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला. एक जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को खेती करने के अधिकार मिले. 1954 में उन्होने किसानों के हित में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया. चरण सिंह स्वभाव से भी कृषक थे तथा कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे. 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्री बनाया गया. उन्होंने कृषकों के कल्याण के लिए काफी कार्य किए. लोगों के लिए वो एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे. उनके भाषण को सुनने के लिये उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी.
किसानों में चौधरी साहब के नाम से मशहूर चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. तब 1967 में पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कहीं पत्ता भी नहीं हिल पाया था. 17 फरवरी 1970 को वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. अपने सिद्धांतों से उन्होने कभी समझौता नहीं किया. 1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया. केन्द्र में गृहमंत्री बनने पर उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वे उप प्रधानमंत्री बने. बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद हो गये. 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने.
अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने 2001 में हर वर्ष 23 दिसम्बर को चौधरी चरण सिंह की जयंती को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाने की जो परम्परा शुरू की थी उससे जरूर उनको साल में एक दिन याद किया जाने लगा है. आज किसानों की हालात को देखकर चौधरी चरणसिंह जैसे देश के बड़े किसान नेता की याद आना स्वाभावित ही है. मौजूदा समय में चौधरी चरणसिंह जैसा नेता होता तो किसानों को उनका वाजिब हक मिलने से कोई नहीं रोक सकता था. चौधरी चरण सिंह जैसे किसानो के बड़े नेता द्धारा किसानों के हित में किये गये कायों को देखते हुये वर्षो पूर्व ही उनको भारत रत्न सम्मान मिलना चाहिये था. मगर सरकारों की अनदेखी के चलते उनको वर्षों तक उचित सम्मान नहीं मिल पाया. नरेन्द्र मोदी सरकार ने चौधरी चरण सिंह जैसे सच्चे बड़े व सच्चें किसान नेता को भारत रत्न प्रदान कर सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है. इससे देश के करोड़ों किसानों के साथ ही सरकार का भी सम्मान बढ़ा है.